परजीवी जीवन के संदर्भ में फैसिओला हिपेटिका की आकारिकी का वर्णन
बाह्य आकारिकी (External Morphology)-
फ्लूक की शारीरिक संरचना लगभग प्लेनेरिआ की संरचना के समान होती हैं।
1. आकार एवं परिमाण (Shape and size)-
इसका शरीर कोमल, अण्डाकार तथा पत्ती के समान पृष्ठाधारी चपटा होता है। इसकी लम्बाई लगभग 1.8 सेमी से 3.0 सेमी तक होती है। मध्य भाग से थोड़ा आगे इसकी अधिकतम चौड़ाई लगभग 0.4 सेमी से 1. 5 सेमी तक होती है। शरीर के इस भाग से आगे तथा पीछे दोनों ओर सँकरा हो जाता है। अगला सिरा कुछ चौड़ा और गोल, जबकि पिछला सिरा कुंठित (blunt) व नुकीला होता है।
2. रंग (Colouration)
इसके शरीर का रंग प्रायः गुलाबी होता है, परन्तु शरीर भित्ति की पारदर्शकता के कारण इसके किनारों पर काली या भूरी पीतक-ग्रन्थियाँ दिखाई पड़ती हैं और आहार नाल परपोषी के अन्तर्ग्रहित पित्त (bile) के कारण भूरे रंग की दिखाई देती है।
3. मुख-शंकु (Oral cone)-
अगले सिरे पर एक स्पष्ट शंकुवत् उभार मुख पालि (oral lobe) या सिर पालि (head lobe) होती है, जिसके अग्र सिरे पर त्रिभुजाकार छिद्र मुख (mouth) होता है।
4. चूषक (Suckers)-
दो छोटे-छोटे चूषक होते है, जिनमें से एक को अग्र चूषक (anterior sucker) और दूसरे को अधरीय चूषक (ventral sucker) कहते हैं। इन चूषकों में हुकों (hooks) और कंटकों (spines) का अभाव होता है। जीव में दो चूषकों की उपस्थिति द्विमुखी डाईस्टोमेटा (distomata) (Gr; di, two = दो; stoma, mouth = मुख) कहलाती है।
(a) अग्र चूषक (Anterior sucker)-
एक प्यालाकार पेशीय अंग, अग्र या मुख चूषक (anterior or oral sucker), के केन्द्र एवं तली में मुख स्थित रहता है। इस चूषक का व्यास लगभग 1 मिमी होता है मुख चूषक की पेशियाँ मुख तट से आरम्भ होकर चारों ओर चषक की परिधि तक फैली होती हैं। यह एक आदर्श चूषक-अंग होता है, जो चिपकने तथा भोजन अन्तर्ग्रहण करने का कार्य करता है।
(b) अधरीय चूषक (Ventral sucker)-
मुख चूषक से लगभग 3 या 4 मिमी पीछे अधर तल की मध्य रेखा पर कटोरे के समान एक और आसंजक (adhesive) चूषक होता है। इसे अधर (ventral) या पश्च-चूषक (posterior sucker) या ऐसिटेबुलम (acetabulum) कहते हैं। इसमें कोई छिद्र नहीं होता और इसका व्यास लगभग 1.6 मिमी होता है।
5. छिद्र (Apertures)-
शरीर में मुख के अलावा दो स्थाई छिद्र और पाए जाते हैं। इनमें से एक जननिक छिद्र (gential aperture) या जनन रन्ध्र (gonopore) होता है जो मध्य-अधर सहत पर ऐसिटेबुलम से कुछ आगे स्थित रहता है। दूसरा उत्सर्जी छिद्र (excretory pore) होता है, जो पिछले सिरे पर कुछ अधर सतह की ओर स्थित रहता है। जनन काल में शरीर की ऊपरी सतह पर मध्य से कुछ आगे की ओर एक अस्थाई छिद्र प्रकट हो जाता है, जिसे लॉरर की नाल का छिद्र (opening of Laurer's canal) कहते हैं। गुदा (anus) के अभाव में इसकी आहार नाल अपूर्ण होती है।
6. शल्क (Scales)
यकृत-फ्लूक का सम्पूर्ण शरीर अध्यावरण (tegument) या क्यूटिकल (cuticle) से ढका रहता है, जिससे पीछे की ओर दिष्ट (directed), असंख्य छोटी-छोटी कटिकाएँ (sinules) या शल्क (scales) निकले होते हैं। ये शल्क इसके शरीर को परपोषी की पित्त वाहिनी में चिपकाए रखने, शरीर की रक्षा करने और चलन में सहायक होते हैं।
पाचन-तन्त्र (Digestive System)
1. आहार नाल (Alimentary canal)
फे.हिपेटिका की आहार नाल (alimen tary canal) अपूर्ण होती है क्योकि इसमें गुदा का अभाव होता है। इसका मुख अगले सिरे की अधर सतह पर होता है जिसके चारों ओर मुख-चूषक (oral sucker) होता है। मुख अन्दर की ओर ग्रसनी (pharynx) में खुलता है। गुसनी की अवकाशिका सँकरी तथा भित्ति मोटी होती है। इसकी भित्ति में अरीय पेशियाँ (radial muscles) और. ग्रसनी-ग्रन्थियाँ (pharyngeal glands) होती हैं। ग्रसनी के पश्चात् एक छोटी तथा सँकरी ग्रसिका (oesophagus) होती हैं। ग्रसिका उपकला कोशिकाओं की एक पर्त द्वारा आस्तरित रहती है ओर आगे बढ़कर आँत्र (intestine) में खुलती है। आँत्र तुरन्त ही दाहिनी तथा बाई दो मुख्य शाखाओं में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक शाखा पिछले सिरे के निकट पहुँच कर अंध रूप से समाप्त हो जाती है और इसकी सम्पूर्ण लम्बाई से अन्दर तथा बाहर की ओरअसंख्य अनियमित उपशाखाएँ सीका (caeca) या अंध-नालें (diverticula) निकलती है। बाहर की ओर की अंध-नालें अन्दर की अंध-नालों की अपेक्षा बड़ी और पुनः शाखित होती हैं।
ग्रसनी और ग्रसिका दोनों, अन्दर की ओर, क्यूटिकल द्वारा आस्तरित रहती हैं, जबकि आँत्र में अन्त:चर्मी स्तम्भी उपकला कोशिकाओं का स्तर होता है जिसके चारों ओर वृत्ताकार एवं अनुदैर्घ्य तन्तुओं की बनी पतली पेशी परत होती है। अंध-नाल की उपकला में स्त्रावी ग्रन्थि कोशिकाएँ होती हैं।
2. भोजन एवं अशन (Food and feeding)
यह अशन करने अर्थात् भोजन ग्रहण करने के लिए प्रवास करता है। भूखे फ्लूक अशन के लिये पित्त की छोटी-छोटी नलियों या केशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं और अपने मुख-चूषक द्वारा परपोषी की पित्त-वाहिनी की भित्ति से रुधिर, लसीका, पित्त और ऊतक टुकड़ों को चूस लेते हैं। मुख-चूषक और पेशीय ग्रसनी दोनों मिलकर एक अच्छे चूषक उपकरण की भाँति कोर्य करते हैं।
3. पाचन (Digestion)-
पाचन-क्रिया आँत्र में बहि-कोशिकीय (extracellu lar) होती है। पचे हुए भोजन का वितरण आँत्र की बहुशाखित अंध नालों और मेसेन्काइम द्वारा होता है, क्योंकि इसमें परिसंचारी तंत्र का अभाव होता है। उत्सर्जी पदार्थ चारों ओर के मेसेन्काइम में विसरित हो जाते हैं या मुख द्वारा बाहर निकाल दिए जाते हैं। ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज के समान मोनोसैकेरॉइड शक्कर फ्लूक के शरीर की सतह से ही सीधे शरीर में विसरित हो जाते हैं। पचे हुए कुछ भोज्य पदार्थ और अमीनों अम्ल भी अध्यावरण द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। विसरण में बाहरी सतह के अध्यावरण में होने वाले असंख्य वलनों से सविधा मिलती है। इसके शरीर में ग्लाइकोजन और वसाएँ बड़ी मात्रा में सेमेन्काइम ओर पेशियों में संचित होते हैं।
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Zoology