कार्बनः ईंधन के रूप में
दैनिक जीवन में खाना पकाने के लिए यातायात के साधनों तथा विद्युत घरों में उष्मा ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किसी न किसी रूप में कार्बन से बने पदार्थों का ईधन के रूप में उपयोग होता है।
कार्बन ईंधन के रूप में |
वे सभी पदार्थ जो जलने पर अत्यधिक मात्रा में उष्मा उत्पन्न करते हैं, ईधन कहलाते हैं।
ईधनों में मुख्य तापक तत्व कार्बन तथा हाइड्रोजन होते हैं। जिन ईंधनों में नमी की मात्रा कम होती है वे अधिक उष्मा देते हैं। प्रकृति में ईंधन तीनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है।
आइए, विभिन्न प्रकार के ईधनों के बारे में जानकारी प्राप्त करें
ईंधन |
1. ठोस ईंधन -
खनिज कोयला तथा वनों से प्राप्त सूखी लकड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण घरेलू ठोस ईधन हैं। इनका मुख्य उपयोग भट्टियों में ताप उत्पन्न करने, भाप बनाने, धातु कर्म तथा कोयला बनाने आदि में किया जाता है।
आइए, कोयले के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें
आइए, कोयले के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें
कोयला -
प्रकृति में कोयले का निर्माण हजारों-लाखों वर्ष पूर्व पेड़-पौधों जीव जन्तुओं के भूमि में दब जाने से हुआ है। भूगर्भ में दरे ये जीव-जन्तु एवं पेड-पौधे कालान्तर में उच्च ताप व दाब के कारण कोयले में बदल जाते हैं। अत्यधिक दाब के कारण कोयला पत्थर जैसा कठोर हो जाता है। अतः इसे पत्थर का कोयला भी कहते हैं। यह पृथ्वी से खनिज के रूप में निकाला जाता है। कोयले में कार्बन की मात्रा के आधार पर इन्हें मुख्यतः चार भागों में बाँटा जाता है
1. पीट
2. लिग्नाइट
2. लिग्नाइट
3. बिटुमनी
4. एन्थ्रेसाइट
1. पीट-
वनस्पति से कोयला बनने की यह प्रथम अवस्था है। अन्य सभी प्रकार के कोयलों का निर्माण पीट से ही होता है।
- यह सरंध्र, भंगुर तथा भूरे रंग का होता है।
- इसमें लगभग 60 प्रतिशत कार्बन होता है तथा आर्द्रता अधिक होती है।
- इसे जलाने पर यह अधिक धुआँ तथा कम ऊष्मा देता है।
- औद्योगिक रूप से यह निम्न श्रेणी का कोयला है।
2. लिग्नाइट-
- पीट से कोयला बनने का यह प्रथम क्रम है।
- इसमें काष्ठ कोशिकाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।
- यह गहरे भूरे रंग का होता है।
- इसमें लगभग 67 प्रतिशत कार्बन होता है।
- इसे जलाने पर आग की लम्बी लपटों के साथ अत्यधिक मात्रा में धुआँ निकलता है।
3. बिटुमनी
- यह सघन कठोर तथा काला चमकीला होता है।
- यह पीली ज्वाला तथा कम धुए के साथ जलता है।
- इसमें लगभग 80 प्रतिशत कार्बन होता है।
- इसमें वाष्पशील पदार्थों की मात्रा अत्यधिक होती है।
4. एन्थेसाइट
- यह कोयला निर्माण की अंतिम अवस्था है।
- यह काला ,कठोर तथा भंगुर प्रकृति का होता है।
- यह नीली ज्वाला के साथ जलता है।
- इसमें वाष्पशील अंश कम होने से यह अत्यधिक ऊष्मा प्रदान करता है।
- इसके जलने से बहुत कम राख बनती है।
- इसमें लगभग 90 से 98 प्रतिशत कार्बन होता है।
2. द्रव ईंधन-
भूगर्भ से प्राप्त द्रव ईधन को खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम कहते हैं। पेट्रोलियम शब्द दो शब्दों Petra (चट्टान) तथा Olium (तेल) से मिलकर बना है। अतः इसे चट्टानों का तेल भी कहते हैं।
पेट्रोलियम |
पेट्रोलियम कई प्रकार के हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है। भूगर्भ में पेट्रोलियम के ऊपर वाष्पशील हाइड्रोकार्बन की वाष्प अवस्था में एक परत होती है जिसे प्राकृतिक गैस कहते हैं। पृथ्वी से खनिज तेल का खनन करते समय प्राकृतिक गैस को भी ईंधन के रूप में प्राप्त किया जाता है।
खनन से प्राप्त पेट्रोलियम (कच्चे तेल) का ईंधन के रूप में सीधा उपयोग नहीं किया जा सकता है। अतः
पेट्रोलियम के अवयवों को पृथक करने के लिए एक उर्ध्व बेलनाकार पात्र में प्रभाजी आसवन किया जाता है। जिससे अलग-अलग तापमान पर भिन्न-भिन्न पदार्थ प्राप्त होते हैं।
आइए चित्र से इनका अवलोकन करें
पेट्रोलियम |
पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से प्राप्त अशो, उनके संघटन, तापमान तथा उपयोगों को जानकारी निम्नलिखित सारणी में दी जा रही है
पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से प्राप्त होने वाले अंश
पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से प्राप्त होने वाले अंश
3. गैसीय ईधन-
गैसीय ईंधनों के रूप में प्राकृतिक गैस, भाप अंगार गैस एवं वायु अंगार गैस का उपयोग घरेलू तथा औद्योगिक संस्थानों में किया जाता है। गैसीय ईंधनों में प्राकृतिक गैस उष्मा का महत्वपूर्ण स्रोत है।
अ. प्राकृतिक गैस-
पेट्रोलियम खनन के समय प्राप्त गैसें प्राकृतिक गैस कहलाती है। प्राकृतिक गैस में मुख्यतः मेथेन (CH.) गैस पाई जाती है। प्राकृतिक गैस का उपयोग औद्योगिक संस्थानों में ईंधन के रूप में किया जाता है। आजकल प्राकृतिक गैस को संपीडित कर स्वचालित वाहनों में ईंधन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है,जिसे सम्पीडित प्राकृतिक गैस (CNG) के नाम से जाना जाता है।
ब. एल.पी.जी.- (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस)
पेट्रोलियम का प्रभाजी आसवन करते समय 30°C तापमान पर प्राप्त गैसों को पेट्रोलियम गैसें कहते हैं। इन गैसों में मुख्यतः एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन, आइसोब्यूटन आदि पाई जाती हैं। इस गैसीय मिश्रण को उच्च दाब पर आसानी से द्रवित अवस्था में लाया जा सकता है, जिसे एल.पी.जी. कहते हैं। इसे सिलेण्डरों में भरते समय कुछ मात्रा में मर्केप्टन (थायोल) मिला दिया जाता है ताकि इसकी गंध से गैस के रिसाव को पहचाना जा सके। एल.पी.जी. का उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में होता है।
गैसीय ईंधन का उपयोग आजकल तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि -
- गैसीय ईंधन कम समय में अधिक उष्मा देते हैं।
- इनके उपयोग से वायुमण्डल में प्रदूषण कम होता है।
- इन्हें शीघ्रता से जलाया जा सकता है।
- गैसीय ईंधन से राख उत्पन्न नहीं होती है।
आइए, ठोस, द्रव तथा गैसीय ईधनों के उपयोग के बारे में जानकारी प्राप्त करें -
अच्छे ईंधन के गुण-
- अच्छा ईंधन वही है
- जो जलने पर अधिक उष्मा दे।
- जिसके जलने से धुआँ, गैस व राख कम उत्पन्न हों।
- जो आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद हो।
- जिसका परिवहन आसान हो।
ईंधन के अंधाधुंध उपयोग ने जहाँ औद्योगिकीकरण को तेजी से बढ़ाया है, वहीं फैलते प्रदूषण ने पर्यावरण की स्वच्छता को विनाश की ओर धकेला है। वायुमण्डल में बढ़ती कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा सभी के लिए चिन्ता का विषय है। अतः इसको नियंत्रित करने के लिए ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा,पवन ऊर्जा आदि का उपयोग बढ़ाया जा रहा है। पेट्रोल । डीजल की जगह एल.पी.जी. तथा सी.एन.जी. का प्रयोग प्रदूषण की समस्या से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
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Science