अन्तःस्रावी तंत्र
अंतःस्रावी तंत्र
आपने अनुभव किया होगा कि आप कभी-कभी अचानक डर जाते हैं। परीक्षा परिणाम आने से पहले घबराहट होने लगती है। कभी-कभी बहुत क्रोध आ जाता है। विपरीत स्थिति के सामने आने पर पसीना आने लगता है। कुछ व्यक्तियों का कद असामान्य रूप से लम्बा होता है तो कुछ का बौना। आपने अपनी आवाज में बदलाव, दाढ़ी मूछे आना शरीर के अंगों में परिपक्वता आदि को भी महसूस किया होगा। ऐसा क्यों होता है ?हमारे शरीर में पाए जाने वाले विशेष रसायन 'हार्मोन' के कारण ऐसा होता है। हार्मोन्स पौधे और जन्तुओं दोनों में उपस्थित होते हैं। हार्मोन्स क्या हैं ?
हार्मोन्स रासायनिक पदार्थ हैं जो सजीवों के शरीर में अल्प मात्रा में बनते हैं परन्तु इनका विभिन्न तंत्रों व अंगों पर शक्तिशाली प्रभाव होता है।
हार्मोन्स कहाँ बनते हैं तथा इनका परिवहन कैसे होता है ? आओ समझें
- ये संदेशवाहक रसायन हैं।
- अन्तःस्रावी तंत्र की कोशिकाओं अथवा ऊत्तकों द्वारा उत्पन्न होते हैं। यहाँ से इन्हें सीधे ही रुधिर में छोड़ दिया जाता है। रुधिर के साथ हार्मोन्स उन कोशिकाओं अथवा अंगों तक पहुँचते हैं जहाँ इनकी आवश्यकता होती
- हार्मोन्स को रुधिर तक पहुँचाने के लिए किसी प्रकार की नलिकाएँ नहीं होती हैं।
ऐसी ग्रंथियाँ जो अपने रसायनों अथवा उत्पादों को नलिका की सहायता के बिना सीधे ही रुधिर में स्रावित कर देती हैं उन्हें नलिका विहीन अथवा अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ कहते हैं।
समस्त अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ मिलकर अन्तःस्रावी तंत्र का निर्माण करती हैं।
अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ |
हमारे शरीर में एड्रीनल, पिट्यूटरी, थायरॉइड, एवं पैराथायराइड ऐसी चार ग्रन्थियाँ हैं जो एक से अधिक हार्मोन का स्रवण करती हैं, इन्हें विशिष्ट अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन विशिष्ट अन्तःस्रावी ग्रंथियों का मुख्य कार्य हार्मोन्स उत्पन्न करना है। अग्नाशय, अण्डाशय, वृषण आदि अंग मुख्य कार्य करने के अतिरिक्त हार्मोन उत्पन्न करने का कार्य भी करते हैं।
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अंत:स्रावी ग्रंथि,
अंत:स्रावी ग्रंथि के कार्य,
पीयूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि
- यह मस्तिष्क के निचले भाग में स्थित होती है।
- इसका आकार मटर के दाने के बराबर होता है।
- यह दो पालियों से मिलकर बनी है.अग्रपालि व पश्च पालि।
- इस ग्रन्थि में कई हार्मोन बनते हैं जो अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के कार्यो पर नियंत्रण करते हैं । अतः इसे मास्टर ग्रथि भी कहते हैं। इससे निकलने वाले हार्मोन को पिट्यूटराइन हार्मोन कहते हैं।
पीयूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि |
पिट्यूटराइन हार्मोन के कार्य --
- पिट्यूटराइन हार्मोन मूत्र में जल की क्षति को कम करता है।
- शारीरिक वृद्धि को प्रेरित करता है।
- मादा जनन हार्मोन को उत्पन्न करता है।
- स्तन ग्रंथियों में दुग्ध के स्रवण को प्रेरित करता है।
- यह थायरॉइड ग्रन्थि को उत्प्रेरित करता है, जिससे बाल्यावस्था से किशोरावस्था के परिवर्तन होते हैं।
पिट्यूटराइन हार्मोन के प्रभाव -
अधिकता
अधिक सक्रिय होने से उपापचयीक्रियाओं की गति अधिक हो जाती है।शरीर की लम्बाई सामान्य से अधिक हो जाती है।
कमी
उपापचयी क्रियाओं की गति मंद हो जाती है।बौने रह जाते हैं।
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अंतः स्रावी ग्रंथि की खोज किसने की थी,
अंतः स्रावी तंत्र का पेसमेकर किसे कहा जाता है,
थायरॉइड ग्रन्थि :
- यह ग्रन्थि श्वास नली के दोनों ओर अधर तल पर स्थित होती है।
- यह दो पिण्डों से मिलकर बनी होती है।
- इस ग्रन्थि से थायरॉक्सीन हार्मोन उत्पन्न होता है। इसमें आयोडीन उपयुक्त मात्रा में होती है।
थायरॉइड ग्रन्थि |
थायरॉक्सीन हार्मोन के कार्य
- थायरॉक्सीन हमारे शरीर में होने वाली उपापचयी क्रियाओं पर नियंत्रण करता है।
- यह शरीर के ताप पर तथा भोजन के ऑक्सीकरण की गति पर नियंत्रण रखता है।
- यह भ्रूणीय अवस्था के विकास में सहायक है।
थायरॉक्सीन हार्मोन के प्रभाव
अधिकता
ऑक्सीकरण की क्रिया बढ़ जाती है |जिससे हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।त्वचा लाल हो जाती है तथा शरीर गरम रहता है।बैचेनी होती है तथा आवश्यकता से अधिक पसीना आता है।भूख बढ़ जाती है लेकिन वजन कम होने लगता है।भ्रूण का विकास तीव्रता से होता है।नेत्र बड़े होकर बाहर की ओर निकले हुए दिखाई देते हैं। (नेत्रोत्सेंध रोग होना)
कमी
पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं।
त्वचा शुष्क हो जाती है।
शरीर में सुस्ती रहती है एवं बाल झड़ने लगते हैं।
शरीर का शरीर का वजन बढ़ जाता है। भ्रूण का विकास विलम्ब से होता है। |चेहरे पर सूजन आ जाती है।विशेष:- थायरॉक्सीन हार्मोन की कमी से गला फूलकर लटक जाता है, इसे गलगण्ड (घेघा) रोग कहते हैं।
थायरॉक्सीन हार्मोन के प्रभाव |
बचाव एव उपचार
आयोडीन युक्त आहार जैसे- रतालू, जामुन, जमीकन्द, आयोडीन नमक,समुद्री मछलियों आदि का सेवन करें।*****
पैराथायरॉइड ग्रंथि
यह थायरॉइड ग्रंथि के साथ ही स्थित होती हैइनकी संख्या चार होती है।
इससे स्रावित हार्मोन का नाम पैराथॉमोन है।
इससे स्रावित हार्मोन का नाम पैराथॉमोन है।
पैराथॉरमोन हार्मोन के कार्य-
यह रुधिर वेल्सियम के स्तर को बढ़ाता है।
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अग्नाशय ग्रंथि
यह आमाशय के नीचे पायी जाती है।अग्नाशय में विशेष कोशिकाओं के समूह होते हैं जिन्हें लैंगरहैन्स द्वीप समूह कहते हैं। ये दो प्रकार के हार्मोन सावित करते हैं- इन्सुलिन एवं ग्लुकागोन।
इन्सुलिन रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा को कम करके नियंत्रित करता है।
ग्लुकागोन रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाता है तथा नियंत्रित करता है।
ग्लुकागोन रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाता है तथा नियंत्रित करता है।
इन्सुलिन हार्मोन का प्रभाव
अधिकता
रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है।
कमी
रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा अधिक हो जाती है जिससे मूत्र के साथ ग्लूकोज अधिक मात्रा में शरीर के बाहर निकलता है। यह मधुमेह रोग का लक्षण है। इससे पक्षाघात होने की संभावना रहती है।
विशेष ध्यान देने योग्य-
मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसका समय रहते यदि उपचार नहीं हो तो यह शरीर के कई तंत्रों को प्रभावित कर सकता है।
मधुमेह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है अर्थात् एक वर्ष के बच्चे से लेकर किसी वृद्ध व्यक्ति तक को हो सकता है । इसमें व्यक्ति बाहर से स्वस्थ दिखाई दे सकता है परन्तु अन्दर ही अन्दर कमजोर होता चला जाता है।
मधुमेह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है अर्थात् एक वर्ष के बच्चे से लेकर किसी वृद्ध व्यक्ति तक को हो सकता है । इसमें व्यक्ति बाहर से स्वस्थ दिखाई दे सकता है परन्तु अन्दर ही अन्दर कमजोर होता चला जाता है।
बचाव एवं उपचार
- नियंत्रण ही उपचार है।
- शर्करायुक्त भोजन पर नियंत्रण करें।
- कच्चे सलाद (पत्ता गोभी, पालक, ककड़ी, टमाटर, नीबू आदि से बना) का प्रयोग सुबह व शाम को भोजन से पूर्व करें।
- प्रतिदिन योगाभ्यास करें।
- प्रातःकाल एवं सायंकाल भ्रमण करें।
- मधुमेह रोगी की माह में एक बार रुधिर एवं मूत्र में शर्करा की जाँच अवश्य कराएँ।
- समय-समय पर चिकित्सक से उपचार कराएँ।
मानव शरीर की सबसे बड़ी अंत स्रावी ग्रंथि,
अंत स्रावी ग्रंथि in English,
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इससे एड्रीनलीन हार्मोन प्रावित होता है।
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एड्रीनल ग्रन्थि
यह ग्रंथि वृक्क के ऊपरी भाग पर स्थित होती है अत: इसे अधिवृक्क ग्रन्थि भी कहते हैं।इससे एड्रीनलीन हार्मोन प्रावित होता है।
एड्रीनल ग्रन्थि |
एड्रीनलीन हार्मोन के कार्य
- यह हार्मोन अचानक होने वाली घटना या संकटकालीन परिस्थिति में व्यक्ति को सामना करने के लिए तैयार करता है।
- इसे "करो या मरो" हार्मोन भी कहा जाता है।
एड्रीनलीन हार्मोन के प्रभाव
अधिकता
मानसिक तनाव के समय हार्मोन का स्रवण अधिक होता है जिससे रुधिर दाब बढ़ जाता है।श्वसन एवं हृदय की धड़कन तेज हो जाती है तथा आँखों की पुतलियाँ फैल जाती हैं।
कमी
हृदय की धड़कन व रक्तचाप कम हो जाता है।
जनन ग्रन्थियाँ
अ. अण्डाशय-
अण्डाशय मादा जनन तन्त्र का महत्वपूर्ण अंग है जो कि उदर के निचले भाग (नाभि के नीचे)में स्थित होता है। अण्डाशय से प्रमुख हामान एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरॉन उत्पन्न होते हैं। ये हार्मोन गौण लैंगिक लक्षण तथा प्रजनन तंत्र की परिपक्वता के लिए उत्तरदायी होते हैं।
मादा के गौण लैंगिक लक्षण-
आवाज पतली होना, मासिक धर्म,स्तनों का विकास,त्वचा का मुलायम होना आदि हैं।
एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन के प्रभाव
अधिकता
मासिक चक्र निर्धारित आयु से पूर्व प्रारम्भ हो जाता है।
मासिक चक्र अनियमित हो जाता है।
कमी
मादा में गौण लैंगिक लक्षण कम दिखाई देते हैंजनन क्षमता में कमी होने की संभावना होती है।
ब. वृषण-
वृषण नर जनन तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है जो उदर के निचले भाग में बाहर की ओर स्थित होता है। वृषण में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन उत्पन्न होता है।
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के कार्य-
यह नर के गौण लैंगिक लक्षणों तथा नर जनन तंत्र की परिपक्वता के लिए उत्तरदायी होता है।
नर के गौण लैंगिक लक्षण-
आवाज भारी होना, दाढ़ी मूंछ आना, शरीर पर अधिक बालों का आना आदि हैं।
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के प्रभाव
अधिकता
समय से पूर्व परिपक्वता आ जाती है।
कमी
नर के गौण लैंगिक लक्षण कम दिखाई देते हैं। नपुसंकता हो सकती है।
अन्तःसावी तन्त्र के कार्य
- यह वृद्धि को नियन्त्रित करता है।
- जननांगों के विकास को नियन्त्रित करता है।
- यह डर, उत्तेजना, क्रोध जैसे कारकों को नियन्त्रित करता है।
- यह शारीरिक होमियोस्टेसिस (संतुलन) का रख रखाव करता है।
होमियोस्टेसिस का अर्थ शरीर की आंतरिक स्थिति को यथा संभव स्थिर बनाए रखना है जैसे- शरीर का तापमान।
यह तंत्र अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से मिलकर बना है । ये ग्रन्थियाँ हार्मोन्स स्रावित करती हैं, इनकी अल्प व उचित मात्रा शरीर की आवश्यकता को पूरी करने में सक्षम होती है। इनसे हमें क करने की शक्ति मिलती है, जनन क्षमता विकसित होती है और यदि इनकी कमी हो जाए तो शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः संतुलित जीवन जिएँ।
नलिका विहीन ग्रंथि क्या है चार ग्रंथियों के नाम,
बहिःस्रावी ग्रंथि क्या है,
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शब्दावली:
उपापचयी क्रिया-
शरीर में रचनात्मक एवं विनाशात्मक अथवा टूट-फूट तथा मरम्मत कार्य करने वाली क्रिया।
होमियोस्टेसिस-
संतुलित स्थिति बनाए रखने की अवस्था
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महत्वपूर्ण बिन्दु
- हार्मोन्स वे रासायनिक पदार्थ हैं जो सजीवों के शरीर में अल्प मात्रा में बनते हैं परन्तु इनका विभिन्न तंत्रों में अंगों पर शक्तिशाली प्रभाव होता है।
- हार्मोन्स अन्तःस्रावी कोशिकाओं व अंगों में बनते हैं।
- इनका परिवहन रुधिर द्वारा होता है।
- ऐसी ग्रन्थियाँ जो अपने रसायनों अथवा उत्पादों को बिना नलिका की सहायता से सीधे ही रुधिर में स्रावित कर देती हैं उन्हें अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं।
- समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ मिलकर अन्तःस्रावी तंत्र का निर्माण करती हैं।
- विशिष्ट अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का मुख्य कार्य हार्मोन्स उत्पन्न करना है।
- पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि भी कहते हैं। इसमें कई हार्मोन बनते हैं। इनके हार्मोन्स को पिट्यूटराइन हार्मोन कहते हैं।
- थाइरॉइड ग्रन्थि से थाइरॉक्सीन हार्मोन निकलता है।
- अग्नाशय ग्रन्थि के लैंगरहैन्स द्वीप समूह इन्सुलिन तथा ग्लुकागोन हार्मोन्स नावित करतेहैं। इन्सुलिन रुधिर में शर्करा की मात्रा को नियन्त्रित करता है।
- एड्रीनल ग्रन्थि वृक्क के ऊपर स्थित होती है। इससे एड्रीनलीन हार्मोन स्रावित होता है।
- जनन ग्रन्थियों से जनन हार्मोन्स निकलते हैं जो जननांगों की परिपक्वता तथा गौण लैंगिक लक्षणों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
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Tags:
Science