रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा प्रजातिया | Sericulture and Silk Production

रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा प्रजातिया


रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा रेशमकीट की प्रजातियों का वर्णन कीजिए।

रेशमकीट (Silk Worm)-

कीट वर्ग का दूसरा प्रमुख उपयोगी सदस्य रेशमकीट कहलाता है। यह शलभ (moth) जाति का कीट होता है और अपने जीवन-वृत्त में अपनी ग्रन्थियों से एक महान चमकीले एवं अति लम्बे धागे का निर्माण करता है। मनुष्य इसी धागे को खोलकर रेशम बनाता है। इसी कारण मनुष्य इन कीटों को पालता और रेशम उद्योग चलाता है।

रेशमकीट पालन और रेशम उत्पादन (Sericulture and Silk Production)-

व्यापारिक उद्देश्य से रेशम प्राप्त करने के लिये रेशमकीटों का पालन रेशमकीट पालन या सेरिकल्चर कहलाता है।

    रेशम उत्पादन के बारे में पहले केवल चीन के लोगों को ही ज्ञान था। वहाँकी राजकुमारी लोटजन (Lotzen) ने 2695 B.C. में इसकी खोज की थी। 2000 वर्ष पूर्व चीन अन्य देशों को रेशमी वस्त्र भेजता था। रेशमी वस्त्र तैयार करने की कला को वहाँ गुप्त रखा जाता था और रेशमकीट के रहस्य को विदेशों में बताने वाले को मृत्यु दण्ड दिया जाता था। 550 B.C. से यूरोप के पादरी धर्म प्रचारक के रूप में चीन पहँचे। वहाँ रेशम उद्योग के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर व रेशमकीट के अण्डे अपने डण्डे के खोखले भाग में भरकर कुस्तुनतुनियाँ ले गये जहाँ से यह उद्योग पूरे यूरोप व एशिया में फैल गया। आजकल यह उद्योग विश्वव्यापी है परन्तु भारत, जापान, इटली, स्पेन व म्यानमार रेशम उत्पादन में अग्रणी हैं।
रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा रेशमकीट की प्रजातियों का वर्णन कीजिए।

रेशमकीट की जातियाँ (Species of Silk Moth)-

शहतूत की पत्तियों पर पाये जाने वाले बॉम्बिक्स मोराई (Bombyx mori) के अतिरिक्त रेशमकीट की अनेक जातियाँ रेशम उत्पन्न करती है। परन्तु रेशम उद्योग के लिए निम्नलिखित जातियों को ही पाला जाता है।

1. शहतूत का रेशमकीट, बॉम्बिक्स मोराई (Mulberry silk moth, Bombyx mori)

यह बॉम्बिसिडी (Bombycidae) कुल का सदस्य है। इस कीट की मातृ-भूति चीन है। जहाँ से यह विश्व के अन्य भागों में पहुँचा है। इसके लारवा शहतूत की पत्तियाँ खाते हैं, इसी कारण इसको शहतूत का रेशमकीट कहते हैं। इसके कोकून सफेद होते हैं व इनसे प्राप्त होने वाला रेशम सफेद या क्रीम रंग का तथा सबसे उत्तम होता है।

2. टसर रेशमकीट, ऐन्थेरीया पैफिजा (tussore silkworm, Antheraea paphia) 

यह सैटरनिडी (Saturniidae) कुल का सदस्य है तथा भारत, चीन एवं श्रीलंका में पाया जाता है। इसका लारवा साल, बेर, गूलर तथा ओक (oak) की पत्तियाँ खाता है। इसका कोकून हल्के भूरे अथवा पीले रंग का तथा मुर्गी के अण्डे के बराबर होता है। यह वृक्ष पर डण्ठल द्वारा लटका रहता है। टसर रेशमकीट की एक अन्य जाति ऐन्थेरीया टॉयले (Antheraea toyley) हिमालय के तराई वाले भागों में ओक के पौधों पर पाई जाती है। इसका कोकून सफेद रंग का होता है। टसर रेशमकीट को पालना आसान न होने के कारण इसके कोकनों को जंगल से एकत्रित किया जाता है। इसका रेशम टसम कहलाता है।
टसर रेशमकीट, ऐन्थेरीया पैफिजा (tussore silkworm, Antheraea paphia)


रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा रेशमकीट की प्रजातियों का वर्णन कीजिए।

3. मूगा रेशमकीट, ऐन्थैरीया असामान्सिस (Muga silk-moth] Antheraea assamensis)-

यह सैटरनिडी कुल का सदस्य है। इसकी मातृ-भूमि आसाम है। यह बिहार, पश्चिमी बंगाल व उड़ीसा में पाया जाने वाला अर्धपालित (semidomesti cated) कीट है। इसका लारवा मैचिलिस (Machilis) तथा दालचीनी आदि पौधों की पत्तियाँ खाता है। इसका कोकून दूधिया अथवा पीले रंग का होता है व इससे उत्पन्न होने वाला रेशम मूगा रेशम कहलाता है।

4. ऐरी रेशमकीट, फ्लोसामिआ रिसिनी (Erisilk-moth, Phlosamiaricinii)-

यह भी सैटरनिडी कुल का सदस्य है तथा पूर्वी एशिया में रेशम उत्पादन करता है। इसका लारवा अरण्ड (castor) की पत्तियाँ खाता है। इससे प्राप्त होने वाला रेशम ईंट के सदृश लाल रंग का या सफेद होता है। इसके कोकून से रेशम पूरे धागे के रूप में नहीं उधेड़े सकते, छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में निकलता है। इसे साफ करके कातना पड़ता है। इससे प्राप्त होने वाला रेशम अरण्डी रेशम कहलाता है। इसके धागे में चमक कम, परन्तु मजबूती अधिक होती है।
रेशमकीट पालन और उत्पादन तथा रेशमकीट की प्रजातियों का वर्णन कीजिए।

15. देवमूगा रेशमकीट, थायोपेलिआ रिलिजिओसी (Dev-muga silk moth, thiopalia religiosae)-

यह उत्तर प्रदेश व हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में मिलता है। इसकालावा॑चिलाइकोपत्तियाँ खाता है इससे होने वाला धागा मजबूत व खुरदरा होने के कारण मछली पकड़ने वाले जाल बनाने के काम में आता है।

6. ओक रेशम-कीट, ऐन्थेरीया पैरनी (Oak silk moth, Antheraea pernyi)-

यह सैटरनिडी कुल का सदस्य है जो चीन व जापान में होता है। जापान में ए. यामामाई (A. yamamai) तथा हिमालय में ए. रॉयली (A. roylei) को पाला जाता है व इनसे अच्छी किस्म का रेशम उत्पन्न होता है।
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Kkr Kishan Regar

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