मधुमक्खी-पालन की प्रजातीयां, विधियां एवं उपकरण

मधुमक्खी-पालन की प्रजातीयां, विधियां एवं उपकरण


मधुमक्खी-पालन की प्रजातीयां, विधियां एवं उपकरणों का वर्णन कीजिए।

मधुमक्खी (Honey Bee)-
मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं के लिए मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया मधु या शहद (honey) एक प्रमुख भोजन होता है। मक्खियों के लार का एन्जाइम पुष्पों के मकरन्द की जटिल शकर्रा को मधु की सरल शकर्रा में बदल देता है। मक्खियों द्वारा तैयार किया गया मोम (bees wax) चिकित्सा कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। मधुमक्खियों द्वारा पौधों में परागण (pollination). भी होता है। अतः ये कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह सामाजिक जीवन का एक अच्छा उदाहरण भी प्रस्तुत करती है।
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मधुमक्खी पालन (Apiculture)-

व्यापारिक दृष्टि से आधुनिक वैज्ञानिक विधि द्वारा मधुमक्खियों का कृत्रिम पालन से उनके द्वारा निर्मित शब्द व मोम प्राप्त करना मधुमक्खी पालन (bee keeping) या एपिकल्चर (apiculture) कहलाता है।

(1) मधुमक्खियों की जातियाँ (Species of honey bee) 

भारतवर्ष में मधुमक्खी की निम्नलिखित चार जातियाँ पायी जाती हैं जिनसे मधु प्राप्त किया जाता है

1. ऐपिस डॉरसेटा (Apis dorsata)-

इसको सारंग मधुमक्खी तथा 20 मिमी लम्बी व शेष सबसे बड़ी होने के कारण बृहद मधुमक्खी (giant honey bee) भी कहा जाता है। यह अन्य जातियों की अपेक्षा सबसे अधिक शहद बनाती है। इनके एक छत्त से 15 से 40 किग्रा तक शहद प्राप्त हो सकता है। यह अपना छत्ता वृक्षों की शाखाओं, ऊँची इमारतों अथवा पहाड़ी क्षेत्र में गुफाओं या ऊँची चट्टानों पर बनाती है। इनका स्वभाव उत्तेजनापूर्ण होने के कारण ये विक्षुब्ध होकर शीघ्र ही आक्रमण कर देती है। ये गर्मियों में पहाड़ों पर तथा शीत ऋतु में मैदानी भागों में रहती है। इनके उत्तेजनापूर्ण स्वभाव एवं प्रवासी प्रवृत्ति क कारण ही अब तक इन्हें पालतू नहीं बनाया जा सका है।
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2. ऐपिस इन्डिका (Apis indica)-

यह सम्पूर्ण भारत में पायी जाती है। इसे भारतीय मोना भी कहते हैं। यह सारंग मधुमक्खी की अपेक्षा थोड़ी छोटी, केवल 15 मिमी लम्बी होती है। यह अंधेरे स्थानों पर रहना अधिक पसन्द करती है। यह लगभग एक कुट परिमाण के समानान्तर कई छत्ते पेड़ों के खोखले तनों, घनी झाड़ियों, इमारतों की दीवारों, मिट्टी के बर्तनों तथा कुओं इत्यादि में बनाती है। इसके छत्ते के प्रत्येक समूह से 3-4 किग्रा शहद प्राप्त होता है। स्वभाव में शान्त होने के कारण ये आसनी से पाली जा सकती है। 

3. ऐपिस फ्लोरिया (Apis florea)-

इसे भुंगा मधुमक्खी भी कहते हैं। यह भारतीय मोना (A. indica) से छोटी होती है व अपना छत्ता खुले स्थानों पर बनाती है। छत्ते बहुत छोटे-छोटे होने के कारण एक छत्ते से एक बार में केवल 250 ग्राम शहद ही प्राप्त होता है। इसका शहद सबसे मीठा होता है। अपने डरपोक स्वभाव के कारण तथा अधिकतर डंक न मारने के कारण इसके स्वभाव को आसानी से तोड़ा जा सकता है।
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4. ऐपिस मेलिफेरा (Apis mellifera)-

यह यूरोपियन मधुमक्खी भारतीय मोना सदृश ही होती है तथा आजकल भारत में भी अनेक भागों में पाली जाती है। डरपोक स्वभाव के कारण इसे आसानी से पाला जा सकता है। यह भारतीय मोना की अपेक्षा 9-10 गुना अधिक शहद संकलित करती है व शहद भी अच्छा होता है।

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(II) मधुमक्खी -पालन की विधियाँ (Methods of bee-keeping)-

अधिक से अधिक शुद्ध शहद प्राप्त करना ही मधुमक्खी पालन का मुख्य उद्देश्य होता है। प्राचीन काल से ही मधुक्खियों के छत्तों से शहद प्राप्त किया जाता रहा है। मधुमक्खी पालन की दो विधियाँ हैं-(i) पुरानी देशी विधि तथा (ii) आधुनिक वैज्ञानिक विधि।

1. पुरानी देशी विधि (Old indigenous method)-

प्राचीन काल में मधुमक्खियों के छत्तों से मधु प्राप्त करने के लिए धुआँ करके मक्खियों को उड़ा दिया जाता था और शेष को मार कर छत्ते को निचोड़ कर मधु इकट्ठा किया जाता था। परन्तु इस प्रकार इकट्ठा किया गया शुद्ध नहीं होता है था। अण्डे व बच्चे सब नष्ट हो जाते थे तथा उनके अवशेष शहद मे ही रह जाते थे। इसके अलावा प्राकृतिक रूप से निर्मित छत्तों से लगातार शहद नहीं मिल पाता था। अतः धीरे-धीरे लोग इनको पालने के लिए लकड़ी के लम्बे व खोखले लट्ठों, घड़ों अथवा सन्दूकों का प्रयोग करने लगे। परन्तु इन विधियों में यह आवश्यक नहीं होता था कि मधुमक्खी इन लट्ठों, घड़ों या सन्दूकों में छित्ता बना ही ले। अतः धीरे-धीरे इस विधि को एक वैज्ञानिक विधि में बदल दिया गया तथा आधुनिक कृत्रिम छत्तों का आविष्कार हुआ। 
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2. आधुनिक वैज्ञानिक विधि (Modern scientific method)-

आधुनिक वैज्ञानिक विधि द्वारा कृत्रिम छत्तों से शब्द प्राप्त करने को ही मधुमक्खी पालन (apiculture) कहा जाता है। आजकल इसे एक उद्योग के रूप में अपनाया गया है।

(III) मधुमक्खी -पालन के उपकरण (Appliances for bee keeping)-

मधुमक्खी पालन के लिये कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसे-
(i) कृत्रिम मधुमक्खी पेटिका या छत्ता, 
(ii) पोला आधार या कोम्ब काउन्डेशन, 
(iii) मधु-निष्कासन उपकरण, 
(iv) टोपी खोलने का चाकू, तथा 
(v) अन्य उपकरण जैसे धूम्रण उपकरण, जाली, दस्ताने, इत्यादि।
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1. कृत्रिम मधुमक्खी पेटिका या छत्ता (Artificial beehive) 

इसका आविष्कार 1851 में अमेरिकावासी लैंगस्ट्रोथ (Langstroth) ने किया था। आजकल मधुमक्खियों को पालने के लिये लकड़ी से बनी सन्दूक के समान कई प्रकार की पेटिकायें या छत्तें प्रयुक्त होते हैं। पेटिका का परिमाण व भिन्नि भागों में विभाजन आवश्यकतानुसार बदलता रहता है। एक सामान्य मधुमक्खी पेटिका में सन्दूक को जाली द्वारा दो भागों में बाँट दिया जाता है-नीचे का बड़ा भाग शिश कोष्ठक या जनन कोष्ठक (brood chamber) तथा ऊपर का छोटा सुपर कोष्ठक (super chamber) कहलाता है। दोनों कोष्ठों को अलग करने वाली जाली को रानी-पृथक्कारक (queen-excluder) कहते हैं। इसके छिद्र इतने बड़े होते हैं जिनमें से केवल श्रमिका मक्खियाँ ही गुजर कर जनन कोष्ठक से सुपर कोष्ठक में आ-जा सकती है। परन्तु रानी मक्खी नहीं आ सकती। रानी मक्खी द्वारा सुपर कोष्ठ में भी अण्डे देने से शुद्ध शहद प्राप्त नहीं होगा।

2. कोम्ब-फाउन्डेशन (Comb foundation)-

शिशु-खण्ड में 10 या 15 सेमी की दूरी पर समानान्तर लकड़ी के तख्ने लटका दिये जाते हैं। इन तख्तों का ऊपरी भाग क्वीन एक्सक्लडर जाली से सटा रहता है परन्तु निचला सिरा तली से केवल अटका रहता है। दो तख्तों के बीच में पतले तारों से सधी मोम से बनी एक चादर या शीट (wax sheet) खड़ी अवस्था में लटकाते हैं। जिस पर दोनों तरफ षटभुजाकार कोष्ठक (hexagonal chambers) बने होते हैं। मोम से बने इस ढाँचे को पोला आधार या कोम्ब फाउन्डेशन कहते हैं। मधुमक्खियाँ आधार के दोनों तरफ कोष्ठक बनाती हैं जिनमें रानी मक्खी अंडे देती है। सुपर कोष्ठक में भी कोम्ब काउन्डेशन रखे जाते हैं जिनमें निर्मित कोष्ठकों में मधुमक्खियाँ मधु इकट्ठा करती हैं।
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3. मधु-निष्कासन उपकरण (Honey-extracting apparatus)-

कृत्रिम छत्ते का शहद एक मधु-निष्कासन उपकरण द्वारा निकाला जाता है। यह टीन का एक बड़ा ड्रम होता है। इसमें कुछ जालीदार थैलियाँ घूमने वाले डंडों पर लगी होती हैं। ड्रम के नीचे वाले भाग में एक टोंटी होती है। शहद का निष्कासन अपकेन्द्र बल के नियम (prin ciple of centrifugal force) द्वारा सम्भव होता है। ढाँचों से कोम्ब अलग कर जालीदार थैलियों में रख कर तेजी से घुमाते हैं। शहद ड्रम की दीवार से टकराकर नीचे गिरता है और टोंटी द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है। इस विधि से कोम्ब या छत्तों को हानि नहीं पहुँचती तथा उन्हें बार-बार प्रयोग में लाया जा सकता है। 34. टोपी खोलने का चाकू (Uncapping knife)-छत्ते के मधु भाग में एकत्रित शहद के कोष्ठक मोम की टोपी से ढके होते हैं। इस कारण छत्ते को मधु-निष्कासन उपकरण में रखने से पूर्व चाकू को गरम करके टोपी को छूने से वह पिघलकर खुल जाती है।
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5. अन्य उपकरण (Miscellaneous appliances)-

घूम्रण उपकरण एक टिन का डिब्बा होता है। इसके एक सिरे से धुआँ निकलता है। मधुमक्खियों को वश में करने के लिये इससे धुआँ छोड़ते हैं। रखर के दस्ताने पहन कर हाथों को मधुमक्खियों के प्रकोप से बचाने के लिये रेशमी अथवा सूती धागों की बनी जाली पहनते हैं।
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Kkr Kishan Regar

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