स्पंजो में नाल तंत्र

स्पंजो में नाल तंत्र

नमस्कार प्रिय मित्रों,

         आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है स्पंजो के नाल तन्त्र है ? स्पंजो के नाल तन्त्र एवं स्पंजों में जनन की विधियां को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे-

 

पोरिकेरा-सामान्य विवरण (Porifera-General Account)
स्पंजों में नाल तन्त्र (Canal System) 

(I) नाल तन्त्र क्या हैं? (What is canal system?)

 शरीर की सतह पर छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों का होना सभी स्पंजों की पहचान का सबसे अच्छा लक्षण हैं इन छिद्रों के द्वारा ही जल की धारा शरीर के अन्दर प्रवेश करती एवं अन्दर से बाहर आती है। शरीर के अन्दर प्रवेश करने के बाद यह जलधारा शरीर में छोटे-बड़े अनेक अवकाशों के तन्त्र से होकर बहती हैं। स्पंज के शरीर में होते वाले इन छोटे-बड़े सब अवकाशों को ही सामूहिक रूप में नाल तन्त्र (canal system) कहते हैं। 

(II) जलधारा का कार्य (Function of water current)-

स्पंजो में नाल तंत्र
स्पंजो में नाल तंत्र

स्पंजों की कार्यिकी में सबसे अधिक जैविक कार्य जलधारा करती है जिस पर उनका जीवन निर्भर रहता है। इसी धारा के द्वारा स्पंज के शरीर और बाह्य माध्यम के बीच समस्त विनिमय होते हैं। इसी के द्वारा भोजन तथा ऑक्सीजन को शरीर के अन्दर लाया जाता है तथा उत्सर्जी पदार्थ एवं जानकारी कायों को बाहर ले जाया जाता है। कॉलर कोशिकाओं के कशाभों के स्पंदन द्वारा इस जलधारा को उत्पन्न किया जाता है। 

(III) नाल तन्त्र के प्रकार (Types of canal system)-

विभिन्न स्पंजों में इन आन्तरिक मार्गों की व्यवस्था एवं जटिलता भिन्न-भिन्न होती है। इसी भिन्नता के अनुसार विविध स्पंजों में नाल तन्त्रों के तीन प्रकार मिलते हैं, जो क्रमशः ऐस्कॉन (ascon), साइकॉन (sycon) और ल्यूकॉन (leucon) कहलाते हैं। 

1. ऐस्कॉन प्रकार (Ascon type)-

यह एक सरलतम प्रकार का नाल तन्त्र है, जो ऐस्कोनॉइड (asconoid) स्पंजों में पाया जाता हैं, जैसे ल्युकोसोलीनिआ (Leucosolenia) तथा सभी साइकोनॉइड स्पंजों के परिवर्धन में होने वाली ओलिन्थस (olynthus) अवस्था में। 

            इस प्रकार के नालतन्त्र में शरीर की सतह छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों द्वारा छिद्रित होती है, जिन्हें अन्तर्वाही छिद्र (incurrent pores) या ऑस्टिया (Ostia) कहते हैं। ये छिद्र नली के समान कोशिकाओं के अन्तरावकाश होते हैं, जिन्हें पोरोसाइट्स (porocytes) कहते हैं। ये अरीय रूप से मेसेन्काइम तक बढ़ कर सीधे स्पंज-गुहा में खुलते हैं। स्पंज के शरीर में स्पंज-गुहा एक मात्र, बड़ी, विस्तृत एवं केन्द्रीय गुहिका होती है और कशाभी कोएनोसाइट्स द्वारा आस्तरित रहती है। स्पंज-गुहा दूरस्थ सिरे पर स्थित एक वृत्ताकार छिद्र, ऑस्कुलम (osculum) द्वारा बाहर खुलती है। दूरस्थ सिरे पर स्थित ऑस्कुलम प्रायः बड़ी-बड़ी एकाक्ष कटिकाओं द्वारा झालरित रहता है। 

            समुद्र का जल ऑस्टिया (ostia) द्वारा नाल तन्त्र में प्रवेश करता है। कॉलर कोशिकाओं (collar cells) के कशाभों के स्पन्दन द्वारा जल का प्रवाह होता है। जल प्रवाह की दर मन्द होती है क्योंकि लमबी चौड़ी स्पंज-गुहा में जल की मात्रा इतनी अहि होती है कि उसे केवल एक ऑस्कुलम द्वारा एक साथ ही बाहर नहीं धकेला जा सकता। जल धारा द्वारा अपनाया गया मार्ग निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है 

2. साइकॉन प्रकार (Sycon type)-

साइकॉन प्रकार का नालतंत्र छिद्रों और नालों का अपेक्षाकृत अधिक जटिल तंत्र है और साइकॉनाभ स्पंजों जैसे साइका (Scypha) या साइकॉन तथा ग्रेन्शिया (Grantia) की एक विशेषता है। साइकॉनाभ स्पंज ऐस्कॉनाभ शरीर की भित्ति के हॉरीजॉन्टल रूप से वलित (folded) होने से व्युत्पन्न होती है। साइका का भ्रूणीय परिवर्धन ऐस्कॉनाभ रूप स्पष्ट करता है जो कि बाद में साइकॉनाभ रूप में बदल जाता है। साइकॉनाभ स्पंजों की शरीर-भित्ति में अन्तर्वाही (incurrent) और अरीय (radial) दो प्रकार की नालें होती हैं, जो परस्पर समानान्तर और एकान्तर पाई जाती हैं। ये दोनों प्रकार की नालें देह भित्ति में अन्धे सिरे (blind end) के रूप में समाप्त हो जाती हैं परन्तु दोनों छोटे-छोटे छिद्रों द्वारा एक दूसरे से जुड़ी रहती है। अन्तर्वाही छिद्र या चर्मी ऑस्टिया (dermal ostia) जो शरीर की बाहरी सतह पर पाए जाते हैं, अन्तर्वाही नालों में खुलते हैं। ये नाल अकशाभी होती हैं क्योंकि इनका अस्तर पिनेकोसाइट का बना होता है और सूक्ष्म आगम-छिद्रों (prosopyles) द्वारा अरीय नालों में खुलती हैं। आगमछिद्रों को पोरोसाइट के भीतर मार्ग होना अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है परन्तु यह निश्चित है कि एक वयस्क स्पंज में ये शरीर-भित्ति के सरल अन्तर्कोशिकीय (inter cellular) अवकाश होते हैं। कोएनोसाइट्स द्वारा अस्तरित रहने के कारण अरीय नाल कशाभी कक्ष होते हैं। ये नाले आन्तरिक ऑस्टिया (internal ostia) या निर्गम छिद्रों (apopyles) द्वारा स्पंज-गुहा में खुलती हैं। स्पंज-गुहा एक सकरी अकशाभी गुहिका होती है जो पिनेकोसाइट्स आस्तरित होती है। यह ऐस्कॉनाभ के समान एक बहिर्वाही छिद्र, ऑस्कुलम (Osculum) द्वारा बाहर खुलती है। 

            साइकोनाभ प्रकार के और अधिक जटिल नाल तंत्र में अन्तर्वाही नाल अनियमित, शाखित एवं शाखामिलनी (anastomosing) होती है, जिससे बड़े उप-चर्मी अवकाश (sub-dermal spaces) बन जाते हैं। ऐसा वल्कुट (cortex) के विकास के कारण होता है, जिसमें पिनेकोडर्म और मेसेन्काइम दोनों सम्मिलित होकर स्पंज की बाहरी सतह पर फैले रहते हैं। जैसे ग्रेन्शिआ (Grantia) में। 

3. ल्यूकॉन प्रकार (Leucon type)-

शरीर-भित्ति का और अधिक वलयन होने के फलस्वरूप साइकॉन प्रकार के नालतन्त्र से अधिक जटिल प्रकार का नालतन्त्र बन जाता है, जिसे ल्यूकॉन प्रकार (leucon type) कहते हैं। यह स्पांजिला (Spongilla) के समान ल्यूकानाभ स्पंजों का लक्षण है। इसमें अरीय सममिती समाप्त हो जाती है और नाल तन्त्र बहुत अयिमित हो जाता है। कशाभी कक्ष छोटे और गोलाकार होते हैं और कोएनोसाइट्स से आस्तरित होते हैं। इनके अलावा अन्य सभी कक्षों को पिनेकोसाइट्स आस्तरित करती हैं। अन्तर्वाही नालें आगम द्वारों (prosopyles) द्वारा कशाभी कक्षों में खुलती हैं और दूसरी ओर ये कक्ष निर्गम द्वारों (apopyles) द्वारा बहिर्वाही नालों (excurrent canals) में खुलते हैं। स्पंज-गुहा के छोटे और विभाजित होने के फलस्वरूप बहिर्वाही नालों का विकास होता है और स्पंज गुहा समाप्त हो जाती है। बहिर्वाही नालें ऑस्कुलम द्वारा बाहर खुलती हैं।

            यद्यपि लयूकॉन प्रकार का नालतन्त्र साइकॉन प्रकार के नालतन्त्र का रूपान्तर प्रतीत होता है तथापि बहुत से कैल्केरिआई स्पंजों में ल्यूकॉन प्रकार के नालतन्त्र का विकास उनकी भौणिकी में ऐस्कॉन तथा साइकॉन प्रकार से गुजरे बिना ही सीधे रूप से होता है। डीमोस्पॉजिआई स्पंजों में ल्यूकोनॉइड दशा की व्युत्पत्ति एक लारवा अवस्था, जिसे रैगॉन (rhagon) कहते हैं, से होती है। इस लारवा की स्पंज-गुहा में चारों ओर कशाभी कक्ष (flagellated chambers) होते हैं, जो चौड़े-चौड़े निर्गम द्वारों (apopyles) द्वारा स्पंजगुहा में खुलते हैं। स्पंज-हा के शिखर पर केवल एक ऑस्कुलम बाहर को खुलता है। रैगॉन लारवा में मिलने वाला नाल-तंत्र किसी अन्य वयसक स्पंज में नहीं होता है। डीमोस्पाँजिआई स्पंजों में रॅगॉन अवस्था से व्युत्पन्न होने के कारण ल्यूकॉन प्रकार के नाल-तंत्र को रेगॉन (rhagon) प्रकार का भी कहा जाता है। 

ल्यूकॉन प्रकार का नालतंत्र अपने उद्विकासीय प्रतिरूप में तीन उत्तरोत्तर श्रेणियाँ प्रकार करता है। 

(a) यूरिपाइलस प्रकार (Eurypylous type) –

यह ल्यूकॉन प्रकार के नालतंत्र का सबसे प्रारम्भिक प्रकार है। इस प्रकार के नालतंत्र में कशाभी कक्ष चौड़े निर्गम द्वारों  (appopyles) द्वारा बाहिर्वाही नालों (excurrent canals) से जुड़े होत हैं। इस प्रकार का नाल-तंत्र प्लैकाइना (Plakina) में पाया जाता है। 

(b) ऐफोडल प्रकार (Aphodal type)-

जिओडिआ (Geodia) के समान कई न्यूकोनॉइड स्पंजों में प्रत्येक निर्गम द्वार बड़ा होकर एक सकरी नाल में बदल जाता है, जिसे ऐफोडस (aphodus) कहते हैं। यह नाल भी कशाभी कक्ष को बहिर्वाही नाल से जोड़ती हैं। 

(c) डिप्लोडल प्रकार (Diplodal type)—

ऑस्करेला (Oscarella) और स्पॉन्जिला (Spongilla) के समान कुछ स्पंजों में ऐकोडस के अलावा एक और सरकरी नली पाई जाती है, जिसे प्रोसोडस (prosodus) कहते हैं। यह अन्तर्वाही नाल तथा कशाभी कक्ष के बीच होती है। ऐसे प्रतिरूप को डिप्लोडल प्रकार का नाल-तन्त्र कहते हैं। 

diplodal
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