स्पंजों में जनन की विधियां | sapnon mein janan ki vidhiyan

स्पंजों में जनन की विधियां

sapnon mein janan ki vidhiyan

नमस्कार प्रिय मित्रों,

         आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है स्पंजों में जनन की विधियां क्या है ?  स्पंजों में जनन की विधियां को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे-

स्पंजों में जनन (Reproduction in Sponges)

स्पंजो में अलैंगिक (asexual) और लैंगिक (sexual) दोनों विधियों द्वारा जनन होता है।

sapnon mein janan ki vibhinn vidhiyan

(1) अलैंगिक जनन (Asexual reproduction)

 स्पंजों में अलैंगिक जनन मुकुलन (budding), खण्डन (fission) अथवा अलैंगिक रूप से बने भ्रूणों जैसे ह्रास पिण्डों (reduction bodies) और मुकुलकों (gemmules) द्वारा होता है।

 

1. मुकुलन द्वारा (By budding)

 इस विधि द्वारा स्पंज निवह में सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती है अथवा नए निवहों का विकास होता हैं। इस प्रक्रिया में पहिले बहुत-सी आद्यकोशिकाएँ (archaeocytes) शरीर की सतह पर इकट्ठी हो जाती हैं। इसके बाद उस स्थान की पिनकोडर्म (pinacoderm) इकट्ठी हुई आद्यकोशिकाओं को ग्रहण करने हेतु बाहर को उभरती है। इस प्रकार बनी मुकुल धीरे-धीरे बढ़कर एक वयस्क प्राणी बन जाती है। इसके बाद यह अपने जनक प्राणी के साथ ही जुड़ा रहता है या उससे पृथक होकर निकटवर्ती किसी अन्य आधार तल पर स्थित होकर अपना स्वतन्त्र निवह बनाता है।

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2. खण्डन द्वारा (By fission)

 कुछ स्पंजों में शरीर से पृथक हुए टुकड़ों में खण्डन द्वारा गुणन होता है। एक सीमित क्षेत्र में स्पंज की अतिवृद्धि (hypertrophied) हो जाने पर उसमें दुर्बलता की रेखा विकसित हो जाती है। इस दुर्बल रेखा के साथ-साथ कटाव (splitting) होता है और शरीर का एक टुकड़ा मुख्य जनक प्राणी से पृथक हो जाता है जिसका एक नए प्राणी में विकास हो जाता है। आगे चलकर इस नवनिर्मित विकसित प्राणी से मुकुलन द्वारा एक नई निवह (colony) बन जाती है।

 

3. हास पिण्डों का निर्माण (Formation of reduction bodies)

 अलैंगिक जनन की एक अन्य अति असामान्य विधि ह्रास पिण्डों (reduction bodies) का निर्माण है। प्रतिकूल दशाएँ होने पर बहुत से स्वच्छ जलीय और समुद्रवासी स्पंज हासित (disinte grate) होने लगते हैं। हासित होता स्पंज प्रायः नष्ट हो जाता है, और गेंद के समान रचनायें शेष रह जाती है, जिन्हें ह्रास पिण्ड (reduction bdy) कहते हैं। प्रत्येक ह्रास पिण्ड के अन्दर अमीबोसाइट्स का समूह होता है और उनके चारों और पिनकोडर्म (pinacoderm) की पर्त होती है। इनकी यह बाहरी पर्त मुकुलकों के बाहरी कठोर प्रतिरोधी आवरण के विपरीत कम जटिल होती है। अनुकूल दशाओं के आने पर ये हास पिण्ड पूर्ण स्पंज में वृद्धि कर जाते हैं।

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Formation of reduction bodies
Formation of reduction bodies

 

4. मुकुलकों का निर्माण (Formation of gemmules)

 स्वच्छ जलवासी और कुछ समुद्रवासी स्पंजों जैसे फाइकुलाइना (Ficulina),टीथिया (Tethya), सुबेराइटीस (Suberites), इत्यादि में अलैंगिक जनन एक नियमित एवं विशिष्ट विधि आन्तरिक मुकुलों द्वारा होता है। इन मुकुलों को मुकुलक (gemmules Gr., gemma, bud = 'मुकुल) कहते हैं। ये मुकुलक जनक प्राणी से पृथक होकर एक पूर्ण और स्वतन्त्र प्राणी में विकसित हो जाती हैं। मुकुलकों के निर्माण से स्पंज जीवन की प्रतिकूल दशाओं, जैसे अत्यन्त ठंड या सूखा, को सहन करने योग्य हो जाते हैं, क्योंकि मुकुलक वयस्क स्पंजों की अपेक्षा जल के जमने या अधिक शुष्कता को अधिक सहन कर लेते हैं। पूर्णरूपेण वृद्धि करके मुकुलक एक छोटी कठोर गेंद की भाँति हो जाता है। इसके अन्दर के भाग में भोजन संचित आद्यकोशिकाएँ होती हैं, जिनके चारों ओर काइटिनी आवरण का प्रतिरोधी खोल या कैप्सूल होता है। इस आवरण की रचना में बाह्य तथा आन्तरिक दो झिल्लियाँ होती है। आवरण में एक ओर एक छोटा छिद्र होता है, जिसे सूक्ष्मछिद्र (micropyle) कहते हैं। आवरण को दृढ़ता प्रदान करने के लिए इसमें सिलिकाई उभयबिम्ब (amphidisc) कटिकाएँ होती हैं जैसे एकाइडेशिआ (Ephydatia) में, अथवा एकाक्ष (monaxon) कंटिकाएँ स्पंजिला (Spongilla) में होती है।

Formation of gemmules
Formation of gemmules

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   हेमन्त (autumn) ऋतु में स्वच्छ जलीय स्पंज ठंड और भोजन की कमी के कारण मर जाते हैं और शरीर के छिन्न-भिन्न होने पर मुकुलकों की एक बड़ी संख्या शेष रह जाती है जो सम्पूर्ण शरद ऋण में निष्क्रिय बने रहते हैं। स्वतन्त्र होने के बाद ये मुकुलक डूबकर तली में इकट्ठे हो जाते हैं या जल के साथ तैरते हुए इधर-उधर फैल जाते हैं अप्रैल या मई मास में बसन्त ऋतु आने पर जब परिस्थितियाँ फिर से अनुकूल हो आती हैं तो मुकुलक सक्रिय हो जाती हैं ओर उनसे शिशु स्पंज निकलने लगते हैं। प्रत्येक मुकुलन के अन्दर का सजीव पदार्थ (histoblasts) सूक्ष्म छिद्र से बाहर निकल कर नए स्पंज में विकसित हो जाता है। इस प्रकार विकसित स्पंजों में अंड और शुक्राणु उत्पन्न होते हैं, जिनसे स्पंजों की ग्रीष्म सन्तति का निर्माण होता है। यह सन्तति हेमन्त ऋतु आने पर मर जाती है और मुकुलक शेष रह जाते हैं ऐसे स्पंजों का जीवनवृत्त पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generations) का उदाहरण प्रस्तुत करता है। 

 

(II) लैंगिक जनन (Sexual reproduction)

 अधिकांश स्पंज द्विलिंगी (mono ecious) होते हैं। इसके अलावा कुछ एकलिंगी (dioecious) जातियाँ भी देखी गई हैं। आद्य कोशिकाओं या कोएनोसाइट्स से गैमीटोजेनेसिस द्वारा शुक्राणुओं और अंडकों की उत्पत्ति होती है। यद्यपि अधिकांश स्पंज द्विलिंगी होते हैं, तथापि उनमें अंड तथा शुक्राणु अलग-अलग समय पर बनने के कारण पर-निषेचन (cross-fertilization) ही होता है।

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1. निषेचन (Fertilization)

 स्पंज से बाहर निकलती जलधारा के साथ शुक्राणु बाहर निकलते हैं और अन्दर जाती जलधारा के साथ किसी अन्य स्पंज में प्रवेश करते हैं। भरण कोशिकाओं (nurse cells) की भाँति कार्य करने वाली कोएनोसाइट्स इन शुक्राणुओं को वहन करके कशाभी कोएनोडर्म के पीछे स्थित परिपक्व अण्डकों में पहुँचा देती हैं। शुक्राणुओं की पुच्छ पीछे ही रह जाती है। इस प्रकार निषेचन क्रिया यथा स्थिति (in situ) में सम्पन्न हो जाती है। -

 

2. परिवर्धन (Development)

 प्रारम्भिक परिवर्धन मातृ स्पंज के अन्दर ही होता है, जिसके फलस्वरूप एक लारवा अवस्था (larval stage) का निर्माण होता है। स्पंजों में तीन प्रकार के लारवों का वर्णन किया गया है।

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(a) ऐम्किन्लास्टुला (Amphiblastula)

 यह एक खोखली, अण्डाकार लारवा अवस्था है, जो बहुत से कैल्सियमी स्पंजों की लाक्षणिक विशेषता होती है, जैसे साइका (Scypha) में। इस लारवा के अगले आधे भाग में कशाभ होते हैं, जबकि पिछले आहे ने भाग में कशाभों का अभाव होता हैं।

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(b) पैरेन्काइमुला (Parenchymula) 

 यह ठोस अण्डाकार या चपटी लारवा अवस्था अवस्था है। यह कुछ कैल्केरिआ, हेक्सैक्टिनेलिडा (Hexactinellida) तथा अधिकांश डीमोस्पंजिआई (Demospongiae) स्पंजों की लाक्षणिक विशेषता है। इसकी सम्पूर्ण बाहरी सतह पर कशाभ होते हैं।

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(c) सीलोब्लास्टुला (Coeloblastula)

 कैल्सियमी स्पंजों तथा कुछ डीमोस्पंजों में भ्रूण जल्दी ही स्वतंत्र रूप से तैरते हुए शरीर से बाहर आ जाता है जिसे सीलोब्लास्टुला लारवा कहते हैं। ये लारवा एक या दो परिवर्धनी प्रक्रियाओं से गुजर सकता है। ऊपरी किनारे पर 8 बड़े गोल वृहतखण्ड (macromeres) लगे होते हैं जो कशाभ रहित होते हैं तथा दूसरी निचली और 8 छोटे लघुखण्ड (micromeres) खोखले भ्रूण का अधिकांश भाग बनाते हैं। लघुखण्ड तीव्र विभाजन करते हैं तथा इनमें कशाभ विकसित हो जाते है।

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        बाहरी सतह पर होने वाले कशाभों की सहायता से ये गतिशील लारवे अपने पैतृक स्पंज के शरीर से बाहर निकल आते हैं और कुछ घंटों से कई दिनों तक स्वतन्त्र रूप से तैरते रहते हैं। अन्त में ये नीचे बैठकर किसी ठोस वस्तु पर चिपक जाते हैं और फिर कायान्तरण (metamorphosis) द्वारा वयस्क स्पंज में वृद्धि कर जाते हैं।

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