प्लेनेरिया की शरीर भित्ति की औतिकी संरचना
पाचन तंत्र (Digestive System)
(I) आहार नाल (Alimentary canal)-
यद्यपि डूजेसिआ (Dugesia) की आहार नाल स्पष्ट तथा विस्तृत होती है, तथापि गुदा छिद्र (anal opening) के अभाव में यह अपूर्ण (incomplete) होती है। अतः गुदा का अभाव होने से इसकी तुलना सीलेन्टरेटा संघ के प्राणियों की जठरवाहिनी गुहिका (gastrovascular cavity) से की जाती है। इसमें मुख, ग्रसनी और आँत्र तीन भाग होते हैं।
1. मुख (Mouth)-
मुख अण्डाकार या गोल छिद्र होता है और अधर सतह की म य रेखा पर मध्य भाग से कुछ पीछे स्थित होता है
2. ग्रसनी (Pharynx)-
मुख क पेशीहीन ग्रसनी कोष (pharyngeal pouch) नामक बड़ी गुहिका में खुलता है। यह एपीथीलियम या ग्रसनी आवरण (pharyngeal sheath) से घिरा रहता है। ग्रसनी कोष के अन्दरं स्थिर लम्बी, मोटी भित्ति की बेलनाकार तथा पेशीय ग्रसनी होती है। इसकी ग्रसनी को वलयित (folded) या वलकित ग्रसनी (Plicate pharynx) कहते हैं एवं यह पीछे की ओर की स्वतन्त्र रूप से अपनी अन भित्ति से ग्रसनी प्रकोष्ठ में उभरी रहती है। इसके पश्च स्वतन्त्र सिरे पर ग्रसनी छिद्र (pharyngeal opening) होता है, जो मुख छिद्र के कुछ सामने होता है। इन दोनों छिद्रों के बीच के छोटे से अवकाश को मुख गुहिका भी कहा जाता है। ग्रसनी सुविधापूर्वक मुख छिद्र से बाहर उलटी जा सकती है, जिससे शुण्ड (proboscis) की रचना होती है। यह प्रक्रिया भोजन ग्रहण करने के समय होती है। इसी के द्वारा अपना शिकार पकड़ता है।
ग्रसनी भित्ति की बाहरी और भीतरी उपकला स्तरों के बीच पेशीय पर्ते, ग्रन्थि कोशिकाएँ और तंत्रिका जालिका (nerve plexus) पाई जाती हैं। भीतरी उपकला स्तर उपचर्मी होता है। इन उपचर्मी कोशिकाओं में से कुछ के केन्द्रक अपने लम्बे शाखादार कोशिकाद्रव्य प्रवधों द्वारा मेसेन्काइम में लटके
3. आँत्र (Intestine)-
ग्रसनी आगे की ओर एक स्पष्ट ग्रसिका (oesophagus) द्वारा आँत्र (enteron or intestine) में खुलती है। आँत्र तीन प्रमुख शाखाएँ बनाती है, एक मध्यवर्ती (median) और दो पाश्र्वीय (lateral)| मध्यवर्ती शाखा आगे की ओर शरीर के अगले सिरे तक तथा प्रत्येक पार्श्व शाखा पीछे की ओर मुड़कर पिछले सिरे तक फैली रहती हैं। त्रि-शाखित (triee-forked) आँत्र का पाया जाना टर्बिलेरिया के ट्राइक्लैडिडा (Tricladida) गण का विशेष लक्षण हैं।
आँत्र की प्रत्येक मुख शाखा से असंख्य पार्श्व शाखाएँ अंधवर्ध (diverticula or caeca) निकलते हैं, जो आगे फिर शाखाओं में बँट जाते हैं। आँत्र की मुख शाखाएँ और उनके अंधवर्ध ठोस मेसेन्काइम में समाप्त हो जाते हैं। आँत्र की भित्ति पक्ष्माभ विहीन (non-ciliated), रिक्तिका युक्त स्तम्भी कोशिकाओं, कणिकादार सम्भरण (granular storage) कोशिकाओं और ग्रन्थि कोशिकाओं की बनी होती है और बाहर से एक कोमल पेशी पर्त द्वारा आस्तरित होती है।
(II) पोषण (Nutrition)
1. भोजन (Food)-
डूजेसिआ एक मांसाहारी जन्तु है। यह क्रस्टेशियों, कृमियों व कीटों के समान छोटे जन्तुओं का शिकार करता है। बड़े मृत या जिन्दा जन्तुओं के शरीर के छोटे टुकड़ों पर भी निर्वाह कर लेता है।
2. अशन क्रिया (Ingestion)-
यह सिर के दोनों ओर स्थिर विशिष्ट संवेदी कोशिकाओं द्वारा भोजन की पहचान कुछ दूर से ही कर लेता है। भोजन के समीप पहुँचकर यह अपने सिर को इधर-उधर हिलाता है और तत्पश्चात् शिकार के ऊपर रेंगता है तथा शरीर और अधःस्तर के बीच उसे दबाकर और सम्भवतः अपनी अवपंकी ग्रन्थियों एवं रैब्डाइटों (Thabdites) से चिपचिपे द्रव को निकालकर शिकार को फँसा लेता है। इसके पश्चात् यह ग्रसनी को बाहर निकालता है और क्रमाकुंचक गतियों (peristaltic movements) द्वारा शिकार का अनतर्ग्रहण कर लेता है। छोटा शिकार पूरे का पूरा ही निगल लिया जाता है जबकि बड़े शिकार को ग्रसनी ग्रन्थियों से निकले पाचक रस और ग्रसनी की पम्पिंग गतियों (pumping movements) द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर निगला जाता है।
3. पाचन (Digestion)-
पाचन क्रिया अन्तःकोशिकी (intracellular) एवं बहिकोशिकी (extracellular) दोनों प्रकार से होती हैं। वसाओं का सम्भवतः आँत्र की अवकाशिका में ही बहिकोशिकीय पाचन होता है। आँत्र के आस्तर में स्थित अमीबाभ कोशिकाओं में अन्तःकोशिकी पाचन होता है। अमीबाभ कोशिकाएँ भोजन के सूक्ष्मकणों को अपने अन्दर लेकर भोजन धानियों (food vacoules) में उनका पाचन करती हैं। पचा हुआ भोजन आँत्र भित्ति से होकर मेसेन्काइम में विसरित हो जाता है। परिसंचारी तंत्र के अभाव में अत्यन्त शाखित आँत्र एवं मेसेन्काइम द्वारा पचे हुए भोजन का शरीर के सब भागों में वितरण सम्भव हो पाता है। संचित भोजन (re serve food), जो अधिकतर वसा और कभी-कभी प्राटीन गोलिकाओं (glob ules) के रूप में होता है, आँत्र की । उपकला कोशिकाओं में इकट्ठा किया जाता है।
4. मल त्याग (Egestion)-
बिना पचे भोजन को मुख द्वारा ही बाहर त्याग दिया जाता है, क्योंकि इसमें गुदा छिद्र का अभाव होता है।
अधिक समय तक भूखा रहने पर प्लैनेरिआ अपने शरीर के भागों को ही पचाने लगता है। ऐसी स्थिति में यह सबसे पहले क्रमशः अण्डों, वाइटेलाइन ग्रन्थियों (vi telline glands), अण्डाशयों व वृषणों, मेसेन्काइम इत्यादि को पचाता है, यहाँ तक कि अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में तंत्रिका उतकों और सम्वेदी अंगों को छोड़कर अपनी आहार नाल और माँसपेशियों को भी पचा लेता है। ये अंग आहार नाल की अवकाशिका में आगे हैं जहाँ इनका पाचन होता है। इन परिस्थितियों में प्लैनिरिआ का परिमाण अत्यन्त सिकुड़ जाता है इस अवस्था में इसका शरीर अपने पूरे परिणाम का लगभग 1/300 भाग तक रह जाता है। भोजन मिलने पर यह अपने नष्ट हुए अंगों को फिर से बनाकर परिमाण का हो जाता है।
उत्सर्जी तंत्र (Excretory System)-
उत्सर्जी तंत्र में अत्यधिक संख्या में उत्सर्जी कोशिकाएँ, आदिवृक्कक (protonephridia) या ज्वाला कोशिकाएँ (flame cells) और उत्सर्जी-नलिकाएँ (excretory tubules) होती हैं।
1. ज्वाला-कोशिकाएँ (Flame cells)-
जन्तु के शरीर की लम्बाई के साथ प्रत्येक पार्श्व में ज्वाला-कोशिकाओं (flame cells) की बड़ी संख्या पाई जाती है। प्रत्येक ज्वाला कोशिका आकार में बड़ी होती है और उसमें कूटपादों के समान असंख्य शाखित जीवद्रव्यी (protoplasmic) प्रबर्ध चारों ओर की मेसेन्काइम में फैले रहते हैं। कोशिका के मध्य में बलक के समान (bulbous) स्पष्ट गुहिका होती है, जिसे कोशिका अवकाशिका (cell lumen) कहते है। अतः इसका कोशिकाद्रव्य परिधि पर होता है, जिसमें एक गोल या अण्डाकार केन्द्रक और कुछ उत्सर्जी गोलिकाएँ (globules) एवं रिक्तिकाएँ होती हैं। कोशिका की गुहिका में लम्बे रोमों के समान असंख्य कशाम (flagella) या पक्ष्माभ (cilia) लटके रहते हैं। प्रत्येक पक्ष्माभ कोशिकाद्रव्य में स्थित एक गोलाकार रचना आधारी कणिका (basal granule) से निकलता है। जीवित जन्तु में ये पक्ष्माभ जलती हुई मोमबत्ती की लौ की भाँति इधर-उधर गति करते दिखलाई देते हैं। इसी कारण इन उत्सर्जी कोशिकाओं को ज्वाला कोशिकाएँ कहा गया है।
2. उत्सर्जी नलिकाएँ (Excretory tubules)-
ज्वाला कोशिका की बल्ब-समान गुहिका संकरी होकर एक महीन वाहिनी बनाती है, जिसे कोशिका वाहिनी (capillary duct) कहते हैं। केशिका वाहिनी आगे बढ़कर पाश्र्वीय अनुदैर्ध्य उत्सर्जी वाहिनी या नाल (longitudinal excretory duct or canal) में खुलती है। दोनों पाश्वों में एक-एक अत्यन्त कुण्डलित अनुदैर्ध्य उत्सर्जी नालें होती हैं जो शरीर की समस्त लम्बाई में केली रहती हैं और जाल के समान रचना बनाती हैं। दोनों अनुदैर्ध्य उत्सर्जी नालें अगले सिरे पर नेत्रों के सामने एक अनुप्रस्थ वाहिनी (transverse vessel) द्वारा परस्पर जुड़ जाती हैं। प्रत्येक अनुदैर्ध्य नाल असंख्य छोटे उत्सर्जी-छिद्रों या वृक्कक-छिद्रों (excretory pores or nephridiopores) द्वारा ऊपरी सतह पर बाहर खुलती हैं।
उत्सर्जन की कार्यिकी (Physiology of excretion)-
उत्सर्जी पदार्थ मेसेन्काइम से विसरित होकर ज्वाला कोशिकाओं में प्रवेश करके अन्त में बल्बस गुहिकाओं में पहुँचते हैं। कभी-कभी आवश्यक एवं लाभदायक पदार्थ जैसे लवण एवं शर्करा भी इन पदार्थों के साथ गुहिकाओं में आ जाते हैं। कशाभों की तरंगों द्वारा ये पदार्थ जल में घुल पर अनुदैर्घ्य उत्सर्जी नालो में पहुँच जाते हैं। इन नालों की भित्तियाँ आवश्यक पदार्थों का पुनः अवशोषण कर लेती हैं और उत्सर्जी पदार्थ जल की अधिकता के साथ वृक्कक-छिद्रों के द्वारा बाहर निकाल दिये अधिकता के साथ वृक्कक-छिद्रों के द्वारा बाहर निकाल दिये जाते हैं। उत्सर्जी पदार्थों की पर्याप्त मात्रा मुख द्वारा भी बाहर त्यागी जाती है। पाश्वर्वीय उत्सर्जी नालों की भित्तियों में लम्बे-लम्बे कशाभों के बण्डल भी होते हैं। इन्हें पाश्र्वीय ज्वालाएँ (lateral flames) कहते हैं। ये नालों के अन्दर उत्सर्जी द्रव को गतिशील रखते हैं। टर्बिलेरिआ जन्तुओं में प्रोटीन नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ अमोनिया के रूप में त्यागे जाते हैं।
कुछ टर्बिलेरिआ जन्तुओं में उत्सर्जी नलिकाओं के चारों ओर रिक्तिकायुक्त व स्पष्ट केन्द्रकों वाली विशेष प्रकार की कोशिकाएँ, ऐथ्रोसाइट्स (athrocytes) या परावृक्काणु (paranephrocytes) पाई जाती हैं, जो उत्सर्जी पदार्थों को उत्सर्जी नलिकाओं में स्थानान्तरित करने में सहायक होती हैं।
3. परासरण नियमन (Osmoregulation)-
प्लैनेरिआ में ज्वाला कोशिकाओं या उत्सर्जी तन्त्र का मुख्य कार्य उत्सर्जन की अपेक्षा शरीर में परासरण नियमन करना अघि क प्रतीत होता है। यद्यपि इसका कोई प्रत्यक्ष ठोस प्रमाण अभी ज्ञात नहीं है तथापि यह देखा गया है कि स्वच्छ जलीय प्लैनेरिआ जातियों में ज्वाला कोशिकाएँ या आदिवृक्क सुविकसित होते हैं जबकि समुद्रवासी जातियों में इनका अभाव होता है या अति कम विकसित होते हैं अतः उत्सर्जी तंत्र का मुख्य सम्बन्ध परासरणी जल (osmotic water) को शरीर से बाहर निकालना होता है। अतः इसे यदि परासरण-नियन्त्रण तंत्र (osmoregulatory system) कहा जाए तो ठीक होगा।