संयुग्मन की प्रक्रिया, कारण एवं परिस्थितियां तथा महत्व

संयुग्मन की प्रक्रिया, कारक एवं परिस्थितिया तथा महत्व

sanyugman kee prakriya, kaaran evan paristhitiyaan tatha mahatv

नमस्कार प्रिय मित्रों,

         आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है संयुग्मन की प्रक्रिया, कारक एवं परिस्थितिया तथा महत्व क्या है संयुग्मन की प्रक्रिया, कारक एवं परिस्थितिया तथा महत्व को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे|


संयुग्मन (Conjugation)-

पैरामीशियम एक लैंगिक परिघटना से भी गुजरता है, जिसे संयुग्मन (Conjugation) कहते हैं। यद्यपि इसे कभी-कभी लैंगिक जनन भी कहा जाता है, तथापि यह समान जाति के दो प्राणियों के लघुकेन्द्रकी पदार्थ के आंशिक विनिमय के लिए एक अस्थायी संगलन होता है। पैरामीशियम में यह विशिष्ट प्रक्रिया कभी-कभी द्वि-खण्डनों के अन्तर्गत भी पाई जाती है और यह जाति की जैविक शक्ति को निरन्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक होती हैं। ___ 

1. संयुग्मन की प्रक्रिया (Process of conjugation)-

पैरामीशियम की विभिन्न जातियों में संयुग्मन की प्रक्रिया में भिन्नता पाई जाती है। पै. कौडेटम (P. caudatum) में यह प्रक्रिया निम्नलिखित है ___ संयुग्मन में भिन्न-भिन्न संगम प्रकार के दो प्राणी या पूर्वसंयुग्मक (preconjugants) अपने अधर तल से परस्पर सम्पर्क करते हैं और अपनी मुख-खाँचों द्वारा जुड़ जाते हैं। दोनों भोजन लेना बन्द कर देते हैं और इनकी मुख संरचनाएँ अदृश्य हो जाती हैं। इनके जुड़ने के स्थान की तनुत्वक् और एक्टोप्लाज्म हासित हो जाती हैं और दोनों प्राणियों के बीच एक जीवद्रव्यी सेतु (conjugants) कहलाते हैं। स्यामी जुड़वा (Siamese twins) की भाँति जुड़े रहने पर भी संयुग्मित युग्म निरन्तर सक्रिय रूप से तैरते रहते हैं और इनमें से प्रत्येक प्राणी में जटिल केन्द्रकी परिवर्तनों का एक अनुक्रम चलता है।
    सबसे पहले प्रत्येक संयुग्मक का कायिक गुरुकेन्द्रक (macronucleus) छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। बाद में ये टुकड़े कोशिकाद्रव्य में अवशोषित हो जाते हैं। प्रत्येक संयुग्मक की लघुकेन्द्रक (micronucleus) के परिमाण में वृद्धि होती है और फिर उसमें अर्धसूत्री विभाजन होता है। इस प्रकार से प्रत्येक संयुग्मक में चार अगुणित संतति लघुकेन्द्रक (haploid daughter micronuclei) बन जाती है, जिनमें से तीन अपभ्रष्ट होकर अदृश्य हो जाती है, जबकि शेष बची एक सन्तति लघुकेन्द्रक सूत्रीविभाजन द्वारा विभाजित हो जाती है और दो असमान प्राक्केन्द्रक (pronuclei) या युग्मक केन्द्रक (gamete nuclei) बनाती है। इन दोनों में से छोटी सक्रिय प्रवासी युग्मन केन्द्रक (migratory gamete nucleus) और बड़ी निष्क्रिय अचल युग्मक केन्द्रक (station ary gamete nucleus) होती है। इसके पश्चात् प्रत्येक संयुग्मक की प्रवासी केन्द्रक जीवद्रव्यी सेतु से होकर साथी संयुग्मक के अन्दर पहुँच जाती है तथा उसकी अचल केन्द्रक से संगलित होकर एक द्वि-गुणित युग्मनज केन्द्रक (zygote nucleus) या सिनकेरिओन (synkaryon) बनाती है। इस प्रकार दो प्रकार दो विभिन्न प्राणियों के दो केन्द्रकों के पूर्ण रूप से संगलित होकर युग्मनज केन्द्रक बनाने की क्रिया को उभयमिश्रण (amphimixis) कहा जाता है।


    जड़े हए दोनों पैरामीशियम परस्पर जड़े रहने के लगभग 12 से 48 घंटे पश्चात् एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और अब बहिसंयुग्मक (exconjugants) कहलाते हैं। प्रत्येक बहिसंयुग्मक में युग्मनज केन्द्रक में शीघ्रता से क्रमिक रूप से तीन विभाजन होते हैं जिससे प्रत्येक के आठ केन्द्रक बन जाते है, जिसमें से चार गुरुकेन्द्रक (macronuclei) तथा अन्य चार लघुकेन्द्रक (micronuclei) कहलाते हैं। तीन लघुकेन्द्रक खंडित होकर अदृश्य हो जाते है, जबकि शेष बचा एक लघुकेन्द्रक बहिसंयुग्मक के साथ द्वि-खण्डन द्वारा विभाजित हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बहिसंयुग्मक से दो संतति पैरामीशिया बन जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक में दो गुरुकेन्द्रक और एक लघुकेन्द्रक होता है। इसके पश्चात् प्रत्येक संतति पैरामीशियम के विभाजन के साथ ही लघुकेन्द्रक किर विभाजित होता है, जिसके फलस्वरूप दो प्राणी बनते हैं जिनमें से प्रत्येक में एक गुरुकेन्द्रक एवं एक लघुकेन्द्रक होता है। इस प्रकार संयुग्मक के अन्त में प्रत्येक संयुग्मक से चार सन्तति प्राणी बन जाते हैं।


2. संयुग्मन के के कारक एवं परिस्थितियाँ (Factors and conditions of conjugation) 

कार्यिकी रूप से संयुग्मक अति जटिल क्रिया है। यह पैरामीशियम की विभिन्न जातियों के लिये भी भिन्न हो सकती हैं।
(1) जीवन की अनुकूल परिस्थितियों में संयुग्मन नहीं होता। भोजन की कमी या एक विशेष प्रकार के भोज्य जीवाणु की कमी या कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के होने पर कुछ जातियों में संयुग्मन का होना पाया गया हैं।
(2) ऐसा बताया जाता है कि प्रकाश एवं तापमान का एक निश्चित परास जो भिन्न-भिन्न जातियों के लिए भिन्न हो सकता है, संयुग्मन के लिए आवश्यक होता है।
(3) पै. कोडेटम में संयुग्मन प्रायः प्रायःकाल के प्रथम चरण में प्रारम्भ होकर । दोपहर बाद तक होता रहता है।
(4) संयुग्मी प्राणियों का परिमाण (210u) सामान्य प्राणियों के परिमाण 300 से 350u की अपेक्षा सामान्यतः छोटा होता है।
(5) संयुग्म न के लिए पोषण की एक निश्चित स्थिति का होना अनिवार्य हैं, क्योंकि भूखे या आवश्यकता से अधिक भोजन खाए होने पर प्राणी सामान्यतः संयुग्मन नहीं करेंगे।
(6) मोपास (Maupas) के मतानुसार प्राणी लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करने से पूर्व काकी बार अलैंगिक पीढ़ियों से गुजरते हैं, जिसे अपरिक्वता की अवधि (period of immaturity) कहा जाता है, और उसके पश्चात् वे संयुग्मन करते हैं।
(7) परस्पर जुड़ते हुए संयुग्मक आइसोगैमस (isogamous) होते हैं और उनमें आकारिक रूप से नर और मादा का लैंगिक भेद नहीं होता है।
(8) एक 'शुद्ध वंशक्रम' (pure line) अर्थात् एक ही प्राणी के उत्तराधिकारियों (descendants) के बीच संयुग्मन कमी नहीं होता। यह केवल दो भिन्न संगम-प्रकारों (mating types) के प्राणियों के बीच होता है। इस प्रकार पैरामीशियम (Parame cium) में एक प्रकार की कार्यिकी लैंगिक भिन्नता मिलती है।
(9) ऐग्लुटिनेशन (agglutination) की प्रक्रिया संयुग्मन के पक्ष में होती है। यह । संगम प्रकार के पदार्थों अर्थात् प्रोटीनों की पारस्परिक क्रिया होती है, जो पक्ष्माभों में स्थित होती है।


3. संयुग्मन का महत्व (Significance of conjugation) 

यद्यपि संयुग्मन के महत्व के विषय में बहुत कुछ वार्ता समय-समय पर हो चुकी है, तथापि यह कभी भी अनिश्चित है। इस प्रक्रिया के निम्नलिखित कार्य अथवा प्रभाव होते हैं


(a) पुनर्युवनन (Rejuvenation)-

यदि द्वि-खण्डन क्रिया कई पीढ़ियों तक निरन्तर होती रहती हैं, तो पैरामीशियम की शक्ति निरन्तर क्षीण होती जाती है और अन्त में वह अवनमित कार्यिकी दक्षता (depressed physiological efficiency) एवं जीर्णता की अवस्था में प्रवेश कर जाता है। ऐसी परिस्थिति में प्राणी गुणन करना बन्द कर देता है, इसका आकार छोटा हो जाता है, इसके संगठन में ह्रास हो जाता है और अन्त में मर जाता है। प्रजाति को इस प्रकार जीर्ण होकर नष्ट होने से बचाने के लिए संयुग्मन का आश्रय लिया जाता है तथा यह प्रक्रिया प्राणी में अलैंगिक जनन के लिए पुनर्युवनन एवं नष्ट हुई क्षमता का पुनर्संचार करती प्रतीत होती है।
    फिर भी वुड्रफ (Woodruff) और जेनिंग्स (Jennings) इस विचारधारा के समर्थक नहीं से पुनर्युवनन में सहायता मिलती हैं। वुड्ड (Woodruff) ने लगभग 36 वर्षों तक पैरामीशिया के ऐसे सम्वर्धन बनाए रखने में सफलता प्राप्त की, जिसमें लाखों पीढ़ियाँ संयुग्मन की सहायता के बिना ही बनी थीं।


(b) केन्द्रकी पुनर्गठन (Nuclear reorganization)-

संयुग्मन के अन्तर्गत केन्द्रकी उपकरण का पुनर्गठन और केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य के बीच एक पुनर्समायोजन होता है। सम्भवतः गुरुकेन्द्रक अनेक प्रकार की उपापचयी क्रियाओं को करती हुई अपनी शक्तियाँ खो देती है। संयुग्मन में पुरानी गुरुकेन्द्रक का एक नई गुरुकेन्द्रक द्वारा प्रतिस्थापन हो जाने से उपापचयी क्रियाओं को त्वरित करने के लिये एक नवीन उत्साह एवं जीवनशक्ति प्राप्त होती है। 


(c) पैतृक विविधता (Hereditary variation)-

द्वि-खण्डन द्वारा होने वाले अलैंगिक जनन में जनक प्राणी की पैतृक सामग्री बिना किसी परिवतन के एक से दूसरी सन्तति में पहुँचती रहती है, जिसके फलस्वरूप एक पैरामीशियम से प्राप्त समस्त सन्तानें एक जैसी ही वंशागति की बनती रहती है। अतः कभी-कभी संयुग्मन के होते रहने से वंशागत विविधता (inherited variation) निश्चित हो जाती है। संयुग्मन होने से दो क्रमों की पूर्वज परम्परा का मिश्रण ठीक द्विलैंगिक जनन की भाँति होता रहता है।

Kkr Kishan Regar

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