ओबीलिआ की संरचना एवं जीवन-वृत्त
जैसा कि पहले भी वर्णन किया जा चुका है कि ओबीलिआ (Obelia) के जीवन-वृत्त में अलैंगिक हाइड्राभ निवह और लैंगिक मेड्रयूसा दोनों पीढ़ियाँ पाई जाती है। जीवन-वृत्त को पूरा करने के लिए इन दोनों पीड़ियों का नियमित एकान्तरण होता हैं। नर और मादा मेड्यूसी पृथक्-पृथक् होती हैं और उनमें क्रमश: शुक्राणु तथा अण्डाणु बनते है
(I) निषेचन (Fertilization)-
निषेचन क्रिया या तो समुद्र के जल में बाह्य होती है जहाँ युग्मक स्वतन्त्र हो जाते हैं या जल की धाराओं द्वारा शुक्राणुओं को मादा मेड्यूसा तक ले जाया जाता है जहाँ अण्डे शुक्राणु द्वारा निषेचित हो जाते हैं। पितृ मेड्यूसी युग्मकों को मुक्त करने के तुरन्त बाद ही मर जाती हैं।
(II) परिवर्धन (Development)
1. विदलन (Cleavage)-
युग्मनज (zygote) में पूर्णभंजी (Holoblastic) या समान व पूर्ण विदलन (cleavage) होता है, जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं का एक ठोस गेंद के समान मोरुला (morula) बन जाता है। इसके पश्चात् ब्लेस्टुला (blastula) अवस्था बनती है, जो कोशिकाओं की एक खोखली गेंद के समान रचना होती है। इसकी गुहिका को कोरकगुहा (blastocoel) कहते हैं। इसके पश्चात् गैस्टूला भवन (gastrulation) दो प्रक्रियाओं द्वारा होता है। प्रथम कोरकखण्डों की आन्तरिक सतह से नई कोशिकाएँ बनकर पृथक होती रहती हैं और कोरकगुहा में भर जाती है। इस प्रक्रिया को विस्तरण (delamination) कहते हैं। दूसरी, एकध्रुव से कोशिकाएँ पृथक् होकर (unipolar ingression) कोरक में आती हैं और इस प्रकार सम्पूर्ण गुहा भर जाती है। भ्रूण अब एक ठोस गैस्टुला (solid gastrula) या स्टीरिओगैस्टुला (stereogastrula) बन जाता है। इसके सबसे बाहरी स्तर को एक्टोडर्म (ectoderm) और अन्दर के स्तर को एण्डोडर्म (endoderm) कहते हैं।
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2. प्लैनुला लारवा (Planula larva)-
इसके पश्चात् गैस्टुला लम्बाई में बढ़ता है और इसकी बहिःचर्मी कोशिकाएँ पक्ष्माभ धारण कर लेती हैं, जिससे एक मुक्त प्लावी प्लैनुला लारवा (planula larva) बन जाता है। प्लैनुला का अगला सिरा पिछले सिरे की अपेक्षा चौड़ा होता है। शीघ्र ही इसकी ठोस एण्डोडर्म में विस्तरण क्रिया (delamina tion) द्वारा एक गुहिका विकसित हो जाती है, जिसे आद्यांत्र (enteron) कहते हैं।
प्लैनुला अब एक वास्तविक द्विस्तरी (two layered) लारवा बन जाता है। इसमें एक बाहरी पक्ष्माभित एक्टोडर्म और एक भीतरी एण्डोडर्म होती है। औतिकी रूप से इस लारवा में स्तम्भी बहिःचर्मी, सम्वेदी, तंत्रिका एवं ग्रन्थि कोशिकाएँ, पेशीय प्रवर्ध और दंश कोशिकाएँ होती हैं।
3. हाइडुला (Hydrula)-
कुछ समय तक सक्रिय मुक्तप्लावी जीवन बिताने के पश्चात् यह लारवा जल में नीचे डूब जाता है और अपने अगले सिरे द्वारा पत्थर, जलवासी पौधे, लकड़ी अथवा समुद्र में किसी ठोस पदार्थ पर चिपक जाता है। अब इसमें कायान्तरण होता है। इसका प्रारम्भिक सिरा चिपकने के लिए आधारी बिम्ब (basal disc) और दूरस्थ स्वतन्त्र सिरे पर मुख सहित एक हस्तक और स्पर्शकों का एक वृत्तक (circlet) विकसित हो जाता है। अब लारवा एक सामान्य पॉलिप (polyp) या हाइड्रा के समान दिखाई देने लगता है और इसे हाइडुला (hydrula) कहा जाता है। अलैंगिक मुकुलन की एक विस्तीर्ण प्रक्रिया द्वारा हाइडुला धीरे-धीरे अपने पितृ ओबीलिआ निवह के समान एक नये शाखादार ओबीलिया निवह में बदल जाता है।
ओबीलिया के समान स्थानबद्ध जीव के जीवन-वृत्त में मुक्तप्लावी मेड्यूसा एवं लारवा का पाया जाना उसके लिए अति लाभदायक है, क्योंकि इससे प्रकीर्णन में सहायता मिलती है और यह जाति के अति संकुलन (overcrowding) को रोकती हैं।
(III) पीढ़ियों का एकान्तरण एवं मेटाजिनेसिस (Alternantion of generations and metagenesis)
पीढ़ियों के एकान्तरण (alternation of generations)-
को एक ऐसी परिघटना की भाँति परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें एक जीव के जीवन-वृत्त में एक द्विगुणित अलैंगिक प्रावस्था (diploid asexual phase) और दूसरी अगुणित लैंगिक प्रावस्था (haploid sexual phase) नियमित रूप से एक के बाद दूसरी आती रहती है। इस प्रकार का पीढ़ी एकान्तरण मॉस (Imosses) और कर्न (fern) जैसे पौधों में सामान्य है। इन प्रसंगों के जीवन-वृत्त में अलैंगिक द्विगुणित पीढ़ी स्पोरोफीटिक (sporophytic) और दूसरी लैंगिक अगुणित पीढ़ी गैमीटोकीटिक (gametophytic) में नियमित रूप से एकान्तरण होता है। फर्न के पौधे में द्विगुणित स्पोरोफाइट (diploid saprophyte) से अगुणित बीजाणु (haploid spores) बनते हैं। प्रत्येक बीजाणु से चपटी, हरी, छोटी हृदयाकार अगुणित गैमीटोकाइट (haploid gametophyte) पीढ़ी उत्पन्न होती है। इस पीढ़ी से अगुणित अण्डागु (haploid ova) और शुक्राणु (sperms) उत्पन्न होते हैं और निषेचन के बाद द्विगुणित स्पोरोकाइट (diploid sporophyte) बन जाता है और इस प्रकार एक जीवन-वृत्त पूरा हो जाता है।
ओबीलिया का जीवन-वृत्त स्थिर निवही हाइड्राभ (hydroid) एवं एकल मुक्तप्लावी मेड्यूसाभ (medusoid) प्रावस्थाओं के एकान्तरण की परिघटना को प्रदर्शित करता है। इसका हाइड्राभ स्थानबद्ध और लिंगविहीन होता है जिसमें जनन ग्रन्थियों का अभाव होता है। इससे मुकुलन की अलैंगिक विधि द्वारा मेड्यूसी बनती हैं। मेड्यूसी नितान्त रूप से लैंगिक विधि द्वारा अर्थात् अण्डाणु एवं शक्राणु उत्पन्न करके लैंगिक विधि से जनन करती हैं जिससे नए हाइड्राभ निवह बनते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद इस वास्तविकता के कारण ही सीलेन्ट्रेट प्राणियों में पीढ़ी एकान्तरण (alternation f generation) भी कहते हैं क्योंकि इनमें भी अलैंगिक पॉलिपाभ (polypoid) पीढ़ी तथा लैंगिक मेड्यूसा पीढ़ी नियमित रूप से एकान्तरित होती है।
ओबीलिया (Obelia) की मेड्यूसाभ (medusoid) अवस्था एक वास्तविक अगुणित लैंगिक पीढ़ी का निरूपण नहीं करती, क्योंकि (i) मेड्यूसा की उत्पत्ति अलैंगिक मुकुलन विधि द्वारा ब्लास्टोस्टाइल से होती हैं, जो द्विगुणित होता है। इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि मेड्यूसा भी एक द्विगुणित जीवन होता है। (ii) लिंग कोशिकाओं की उत्पत्ति मेड्यूसा में न होकर ब्लास्टोस्टाइल की बहिःचर्म (epidermis) में होती है, जहाँ से वे मेड्यूसा की जनन ग्रन्थियों में प्रवास करती हैं। इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मेड्यूसा एक लैंगिक पीढ़ी का निरूपण नहीं करती है। यह केवल एक मुक्त-प्लावी द्विगुणित विशिष्ट जीवक है जो स्थानबद्ध हाइड्राभ निवह के गैमीट्स का प्रकीर्णन (dispersal) करती है। वास्तव में ओबीलिआ के जीवन-वृत्त में तथा कथित लैंगिक पीढ़ी अस्पष्ट रहती है और केवल अगुणित गैमीट्स के द्वारा निरूपित होती है।
इस प्रकार ओबीलिआ (Obelia) की लैंगिक और अलैंगिक पीढ़ियों के बीच स्पष्ट . रूप से पहचान करना असम्भव है। इसकी अलैंगिक हाइड्राभ निवह और लैंगिक मेड्यूसा केवल भिन्न-भिन्न प्रावस्थाओं या जीवकों का निरूपण करते और बहुरूपता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये दोनों प्रावस्थाएँ एक द्विगुणित पीढ़ी की होती हैं। अतः ओबीलिया में पीढ़ियों का वास्तविक एकान्तर नहीं पाया जाता है।
ओबीलिआ (Obelia) के जीवन-वृत्त में स्थानबद्ध हाइड्राभ (hydroid) और मुक्तप्लावी मेड्यूसाभ (medusoid) के बीच नियमित एकान्तरण होता है परन्तु ये दोनों ही द्विगुणित (diploid) होती हैं। इस प्रकार दो द्विगुणित प्रावस्थाओं के बीच होने वाले एकान्तरण को कुछ वैज्ञानिकों द्वारा मेटाजिनेसिस (metagenesis) कहा गया है। हाईमेन (Hyman) के मतानुसार सीलेन्टरेट में मेटाजेनेसिस की धारणा अमान्य है, क्योंकि इनमें अगुणित और द्विगुणित पीढ़ियाँ नहीं होती हैं। इस प्रकार मेड्यूसा को पूर्ण रूप से विकसित सीलेन्टरेट प्राणि जबकि पॉलिप को सम्भवतः एक स्थाई लारवा अवस्था माना जाता है।
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Zoology