नेरीस (Nereis) का स्वभाव, आवास एवं बाह्य आकारिकी

नेरीस (Nereis) के स्वभाव, आवास एवं बाह्य आकारिकी का वर्णन

हेटेरोनेरीस से तुलना 

स्वभाव और आवास (Habits and Habitat)


    नेरीस एक विश्वव्यापी तथा समुद्रवासी पॉलीकीट प्राणी है, जो रेतीले समुद्र तटों पर जवार चिन्हों के बीच पाया जाता है। यह प्राणी स्वभाव से छिपकर रहना पसन्द करता है अतः अधिकांश समय अपने बिल में ही रहता है। इसी कारण जो व्यक्ति कभी-कभी ही समुद्र तट पर जाते हैं उन्हें दिखाई नहीं होता है। इसका बिल रेत में 60 सेमी तक गहरा तथा 'U' आकार का होता है। अपने हनुओं द्वारा यह बिल बनाता है। इसके शरीर से श्लेष्मा (mucus) का स्त्राव होता है, जिससे बिल की दीवार पर लेप बन जाता है और दीवार के रेत के कण परस्पर चिपके रहते हैं।

    यह अपने शरीर की पृष्ठ-अधर तरंगों द्वारा बिल के अन्दर एक सतत् जल धारा को संचारित करता रहता है। इस जल धारा से ही इसे श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है। यह रात्रिचर (nocturnal) तथा माँसाहारी प्राणी है। छोटे-छोटे क्रस्टेशियन, मोलस्क व ऐनेलिड जन्तुओं का शिकार करता है। यह अपने शिकार की खोज में रात के समय अपना सिर बिल से बाहर निकाल लेता है। इसकी ग्रसनी बहिर्सारित और काइटिनी दाँतों तथा जबाड़ों से युक्त होती है। यह ग्रसनी को बाहर फैलाकर शिकार पकड़ता है ओर बिल के अन्दर खींच कर उसे खा जाता है। कभी-कभी यह बिल से बाहर आ जाता है और शिकार की खोज में पत्थरों, चट्टानों और समुद्री पौधों के नीचे रेंगता रहता है। जनन काल में यह स्थाई रूप से अपना बिल त्याग देता है और जल की सतह पर सक्रिय रूप से इधर-उधर तैरता रहता है। इसकी यह अवस्था हेटेरोनेरीस (heteronereis) कहलाती है।

    कभी-कभी सीपी कृमियों को मछली के शिकार के लिए प्रलोभक (bait) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। यूनानी पौराणिक कथा के अनुसार नेरीड (Nereids) समुद्री अर्भक (sea nymphs) अथवा सुन्दर मानव रूप थे, जो कभी-कभी नाविकों (sail ors) को कुसलाकर बन्दी बना लेते थे।

बाह्य आकारिकी (External Morphology)


(I) आकार, परिमाण एवं रंग (Shape, size and colour)-

नेरीस का शरीर लम्बा, पतला-दुबला, द्विपाश्र्व सममित, आगे से कुछ चौड़ा और पीछे की और शुण्डीय (tapering) होता है। यह पृष्ठ-अधर तल से कुछ चपटा होता है। पृष्ठ तल उत्तल और अधर तल चपटा या कछ अवतल होता है। एक वयस्क कमि 40 सेमी तक या इससे भी अधिक लम्बा होता है। इसकी विभिन्न जातियाँ अलग-अलग रंग की होती हैं। ने. पेलैजिका (N. pelagica) का रंग भूराभ, ने. कल्ट्रिकेरा (N. cultrifera) का हरिताभ और ने. वाइरेन्स (N. virens) का रंग लौहित नीला (steel blue) होता है। इनका रंग इनकी आयु एवं लैंगिक परिपक्वता के साथ बदलता रहता है। क्यूटिकल इसकी सतह को एक अद्वितीय रंगदीप्ति प्रदान करती है।

(II) शरीर के भाग (Body divisions) 

अन्य ऐनेलिडों की भाँति नेरीस का शरीर की कितने ही खण्डों में बँटा रहता है जो एक रैखिक श्रेणी में जुड़े होते हैं तथा समीप खाँचों द्वारा पृथक् रहते हैं। प्रत्येक जाति में खण्डों की संख्या निश्चित होती है। ने. कल्ट्रिफेरा और ने. ड्युमेरिली में लगभग 80, ने वाइरेन्स में लगभग 200 खण्ड पाये जाते हैं। शरीर में तीन भाग स्पष्ट होते हैं-(i) सिर, (ii) धड़, (iii) मुदा खण्ड या पाइजीडियम (pygidium)|s

1. सिर (Head)-

सक्रिय जीवन और परभक्षी (predaceous) स्वभाव के अनुकूल नेरीस के अगले सिरे पर एक सुविकसित सिर होता है जिसमें दो भाग होते हैं

(i) पेरीस्टोमियम (peristomium) और (ii) प्रोस्टोमियम (prostomium)|

(a) पोरिस्टोमियम (Peristomium) 

यह शरीर के अन्य खण्डों से भिन्न सर्वप्रथम खण्ड होता है। यह बड़ा और वलय की भाँति होकर अधर सतह पर स्थित अनुप्रस्थ रूप से चौड़ा दरार रूपी मुख (mouth) के चारों ओर होता है। इसीलिए इसे यह (Gr. peri = चारों और + stoma = मुख) नाम दिया गया है। शिरोभवन (cephalization) की क्रिया में प्रथम दो भ्रूणीय खण्डों के संगलन से इसकी रचना होती है। यह एक सामान्य देहखण्ड की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा, पाश्र्वपाद (parapodia) विहीन और प्रत्येक ओर धागे के समान दो जोड़ी पेरिसटोमिअल सिरसों (peristomial cirri) सहित होता है। सिरसों का पृष्ठ-पार्वीय जोड़ा अध पर-पाश्वीय जोड़ों से अपेक्षाकृत बड़ा होता है। ये सिरस धड़ के खण्डों में पाए जाने वाले पैरापोडिआ के नोटोपाद सिरसों (notopodial cirri) और न्यूरोपाद सिरसों (neuropodial cirri) के समांग होते हैं। प्रत्येक सिरस एक लम्बी व पतली स्पर्श सम्वेदी संरचना होती है जिसमें एक छोटा प्रारम्भिक और एक दूरस्थ लम्बा जोड़ा होता है।

(b) प्रोस्टोमियम (Prostomium) 

यह शरीर का वास्तविक खण्ड न होकर पैरिस्टोमियम का ही पृष्ठ-अग्न प्रवर्ध होता है। यह लगभग त्रिभुजाकार, पृष्ठ-आधारी चपटा और माँसल पालि की भाँति होता है, जो मुख के ऊपर और सामने (Gr., pro - अग्र + stoma = मुख) स्थित रहता है। इसकी पृष्ठ-सतह पर दो जोड़ी सरल एवं वर्णकित (pigmented) नेत्र (eyes), आगे की ओर एक जोड़ी छोटे बेलनाकार, सम्वेदी प्रोस्टोमिअल स्पर्शक (prostomial tentacles) तथा अधर पार्च में एक जोड़ी छोटे, दृढ़, मांसल और दो जोड़ वाले पैल्प (palps) होते हैं। दोनों पैल्प संकुचनशील होते है और इनके छोटे दूरस्थ जोड़ बड़े और प्रारम्भिक जोड़ों में सिमट सकते हैं। "
    स्पर्शक, पैल्प और सिरस सभी सम्वेदी अंगों की भाँति कार्य करते हैं। - 

2. धड़ (Trunk)-

सिर और गुदाखण्ड (Pygidium) को छोड़कर शरीर का शेष सम्पूर्ण भाग धड़ बनाना है। इस भाग में लगभग 80 से 200 समान खण्ड की लम्बाई, चौड़ाई की अपेक्षा कम होती है और इसके दोनों पाश्वों में एक-एक पाश्र्ववाद (parapo dium) होता है।

(a) पाश्र्वपाद (Parapodia)-

पैरापोडिआ (Gr., para, beside = अतिरिक्त + Podos, foot = पैर) प्रत्येक धड़ खण्ड के दोनों पाश्वों में सीधे खड़े, चपटे शरीर-भित्ति के उद्वर्ध पल्ले होते हैं। ये खोखले होते हैं। धड़ खण्ड की प्रगुहा प्रत्येक पाश्र्वपाद के अन्दर तक फैली रहती है। इसकी संरचना प्रारूपिक रूप से द्विशाखी (biramous) होती है, अर्थात् इसमें एक प्रारम्भिक आधारी भाग (basal region) होता है, जिसके दूरस्थ सिरे पर दो भाग होते हैं। इनमें से पृष्ठ भाग को पृष्ठ पाद (notopodium) और अधर भाग को निम्नपाद (neuropodium) कहते है। प्रत्येक भाग फिर से पत्ती के समान दो पालियों या जिभिकाओं (ligulae) में उप-विभाजित हो जाता है। इनमें से एक को पृष्ठीय ऊर्ध्ववर्ती जिभिका (superior ligula) और दूसरी को अधरीय अधोवर्ती जिभिका (inferior ligula) कहते है।


प्रत्येक भाग के आधार पर एक दुर्बल, स्पर्शकी प्रवर्ध होता है, जिसे सिरस कहते है। नोटोपोडियम के ऊपर स्थित पृष्ठ सिरस (dorsal cirrus) नीचे की और स्थित न्यूरोपोडिअल सिरस या अधर सिरस (ventral cirus) की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। प्रत्येक भाग एक गहराई में धंसे, लम्बे, दृढ़ एक काले. काइटिनी दण्ड द्वारा आधारित रहता है, जिसे एसीकुलम (aciculum) कहते हैं। ऐसीकुलम शूक-पेशियों (setalmuscles) के संलग्नन के लिए एक अन्त:कंकाल की भाँति भी कार्य करता है। प्रत्येक भाग में लम्बे महीन, कठोर, काइटिनी रोमों का समूह भी होता है। इन रोमों को शूक (setae or chaetae) कहते हैं जो तट से बाहर निकले होते हैं। प्रत्येक शूक एक शूक कोष (Setigerous sac) के अन्दर स्थित रहता है। यह शूक कोष एपिडर्मिस के अन्दर धंसने से बनता है और सीटा कोष के आधार पर स्थिर निर्माणी कोशिका (formative cell) से निकलता है। जैसे-जैसे पुराने शूक नष्ट होते जाते हैं। वैसे-वैसे शूकीय कोष से नये शूकों का निरन्तर निर्माण होता रहता है। शूकीय पेशिओं की सहायता से शूकों को बाहर प्रसारित, अन्दर, आंकुरित और विभिन्न दिशाओं में घुमाया जा सकता है। प्रत्येक शूक में दो जोड़ होते हैं जिनमें से निकटवर्ती जोड़ को काण्ड (shaft) और दूरस्थ को कलक या ब्लेड (blade) कहते है। नेरीस के शूक साधारणतः दो प्रकार के होते हैं-एक लम्बे कलकीय (long bladed) शूक जिन का काण्ड छोटा और ब्लेड लम्बा, दुर्बलख सीधा और नुकीला होता है। इसके ब्लैड का एक तट क्रकची (serrated) होता है। दूसरे प्रारूपी शूक का काण्ड (Shaft) बड़ा और सुदृढ़ तथा ब्लेड छोटा, दृढ़ तथा इसका सिरा अन्दर की ओर मुड़ा हुआ व खाँचदार होता है। इसकी लैंगिक प्रावस्था, हेटेरोनेरीस (Heteronereis) में एक तीसरी प्रकार का पतवार के आकार का (oar-shaped) शूक पाया जाता है, जिसमें ब्लेड पतवार की भाँति होता है। तीक्ष्ण शूकों का प्रयोग सुरक्षा और बिल के अन्दर की चिकनी दीवार की पकड़ करने के लिये किया जाता है।

    धड़ के मध्य भाग के पाश्र्वपाद सबसे बड़े होते हैं और मध्य से दोनों सिरों की ओर धीरे-धीरे छोटे होते जाते हैं। सभी पार्श्वपाद रचना में समान होते हैं। केवल पहले दो जोड़ी पाश्र्वपाद रचना में समान होते हैं। केवल पहले दो जोड़ी पार्श्वपादों में नोटोपाद शूक नहीं होते है। पाश्र्वपाद प्रचलन और श्वसन क्रिया दोनों कार्य करते हैं।

(b) वृक्कक रन्ध्र (Nephridiopores)-ये अति सूक्ष्म उत्सर्जी छिद्र (excretory pores) होते हैं, जिनके द्वारा वृक्कक बाहर खुलते हैं। वृक्कधारी खण्ड़ों के प्रत्येक पार्श्वपाद में अधर सिरस के आधार के निकट एक एक वृक्कक रन्ध्र होता है।

3. गुदा खण्ड या पाइजीडियम (Pygidium)-

यह शरीर का सबसे अन्तिम खण्ड होता है जिसे पुष्ठ (tail) या गुदीय खण्ड (anal segment) भी कहते हैं। इस पर अन्तस्थ गुदा (anus), एक जोड़ी लम्बे तन्तु रूपी अधर उपांग गुदा सिरस (anal cirri) और अनेक छोटी-छोटी सम्वेदी पैपिलियाँ (sensory papillae) होती हैं इसमें पार्श्वपादों का अभाव होता है।

शरीर भित्ति एवं पेशीन्यास (Body wall and Musculature) इसकी शरीर भित्ति में चार स्तर होते हैं-(i) क्यूटिकल, (ii) एपिडर्मिस (iii) पेशीन्यास, और (iv) पेरीटोनियम।

1. क्यूटिकल (Cuticle)-

यह सबसे बाहर का पतला, दृढ़ और काइटिनी स्तर है। इसमें एक दूसरे को काटती हुई धारियाँ होती है, जो इसे रेग दीप्ति प्रदान करती है। इसके नीचे स्थिति एपिडर्मिस से इसका स्त्राव होता है। इसमें एपिडर्मी ग्रन्थि कोशिकाओं के असंख्य छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं।।

2. एपिडर्मिस (Expidermis)-

यह क्यूटिकल के नीचे एक पतली आधारी कला (basement membrane) पर आधारित रहती है। यह स्तम्भी आधारी कोशिकाओं (supporting cells) और कुछ बिखरी हुई ग्रन्थिल (glandular) एवं सम्वेदी कोशिकाओं (sensory cells) के एक स्तर की बनी होती है। अधर सतह तथा पार्श्वपादों के आधार एवं पालियों होती है। अधर सतह तथा पाश्र्वपादों के आधार पर पालियों की एपिडर्मिस विशेषकर कुछ अधिक मोटी हो जाती है। एपिडर्मी ग्रन्थि-कोशिकाएँ श्लेष्मा (mucus)का स्त्रवण करती है, जिससे कृमि का 'U' आकार बिल आस्तरित रहता है।


3. पेशीन्यास (Musculature)-

नेरीस में (i) वृत्ताकार (circular), (ii) अनुदैर्घ्य (longitudinal) और (iii) तिर्यक (oblique) पेशियों का बना सुविकसित पेशीन्यास होता है। ये पेशियाँ अरेखित पेशी तन्तुओं की बनी होती हैं।

(a) वृत्ताकार पेशी (Circular muscles)-

एपिडर्मिस से नीचे इन पेशियों का एक सतत स्तर होता है, जो नीचे की सतह पर कुछ मोटा हो जाता है। पाश्र्वपादों में वृत्ताकार पेशियाँ अपाकुंचक (protractor) एवं आकुंचक (retractor) पेशियाँ बनाती हुई पाश्र्वपादी पेशियों का एक जटिल तंत्र बनाती है। अपाकुंचक पेशियाँ शूक कोषों के आधार से आरम्भ होकर चारों और की वृत्तीय पर्त तक और आकुंचक पेशियाँ शूक कोषों के बाहरी भाग से पृष्ठ-पार्व शरीर भित्ति तक फैली रहती है।


(b) अनुदेय पेशियाँ (Longitudinal muscles)-

ये वृत्ताकार पेशियों के नीचे सतत स्तर न बनाकर चार सुदृढ़ अनुदैर्ध्य बँडलों में पाई जाती हैं। दो बण्डल पृष्ठ-पाश्र्वीय (dorso-lateral) होते हैं और पृष्ठ रुधिर वाहिनी के दाएँ-बाएँ पाए जाते हैं तथा शेष दो अधर-पाश्र्वीय (ventro-lateral) होते हैं और अधर तंत्रिका रज्जु के दोनों और स्थित रहते हैं। अनुदैर्ध्य पेशियों में संकुचन होने से शरीर छोटा और मोटा हो जाता है।

(c) तिर्यक पेशियाँ (oblique muscles)-

ये प्रत्येक खण्ड में दो जोड़ी होती है। इनमें से पहली जोड़ी पाश्र्वपादों के अगले सीमा-स्तर पर और दूसरी जोड़ी पीछले सीमा स्तर पर होती है। प्रत्येक तिर्यक पेशी अधर तंत्रिका रज्जु तथा अधर-पाश्र्वीय अनुदैर्ध्य पेशी बण्डल के बीच से निकलती है। निकलने के बाद शीघ्र ही यह पृष्ठ तथा अधर शाखा में विभक्त हो जाती है जो अपने संगत पाश्र्वपाद के आधार से जुड़ती है।

   तिर्यक पेशियाँ पार्श्वपादों की मुड़ने की गतियों तथा उनके पूर्ण रुप से आकुंचन के लिए उत्तरदायी होता है। जब वृत्ताकार पेशियों में संकुंचन होता है, तो शरीर अधिक लम्बा और पतला हो जाता है। अपाकुंचक (protractors) और आकुंचक (retractors) पेशियों में संकुंचन होने से पार्श्वपादी सूचिकाओं (acicula) और पालियों में क्रमशः बहिर्सारण (protrusion) और आकुंचन होता है।

4. पेरीटोनियम (Peritoneum)-

पेशियाँ अन्दर की ओर से एक पतली एवं कोमल प्रगुहीय उपकला (coelomic epithelium) या पेरीटोनियम द्वारा आस्तरित रहती है। यही पर्त प्रगुहा का बाहरी अस्तर भी बनाती है और इस प्रकार प्रगही उपकला की कायिक (somatic) या भित्तीय पर्त (parietal layer) भी कही जाती है। यह प्रगुही तरल (coelomic fluid) का स्त्रवण करती है।

5. शरीर भित्ति के कार्य (Functions of body wall)-

नेरीस की शरीर विविध प्रकार के कितने ही काय करती हैं। 
(i) इसका क्युटिकली आवरण शरीर को शष्कन (desication) और यान्त्रिक क्षतियों से बचाता है। 
(ii) एपिडर्मिस अत्यन्त सम्वहनी होने के कारण श्वसन का कार्य करती है। 
(iii) एपिडर्मी ग्रन्थियों से श्लेष्मल का स्त्राव होता है जिससे बिल की दीवार आस्तरित रहती है। श्लेष्मल से दीवार के रेत के कण परस्पर चिपके रहते हैं और बिल नष्ट नहीं होता। 
(iv) एपिडर्मिस की सम्वेदी कोशिकाओं द्वारा बाह्य सम्वेदनाओं को ग्रहण किया जाता है। 
(v) पेशियों द्वारा विविध प्रकार की गतियों में सहायता होती है। 
(vi) शूकों (setae) द्वारा प्रचलन होता है। 
(vii) प्रगुहा को आस्तरित - करने वाली पेरीटोनियमी कोशिकाएँ प्रगुहीय द्रव का स्त्रवण करती एवं जनन काल में जनन अंगों की रचना करती हैं।
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