फेरेटिमा के जननांगों का वर्णन कीजिए।
जनन-तन्त्र (Reproductive System)-
केंचुए में अलैंगिक जनन (asexual reproduction) न होकर लैंगिक जनन (sexual reproduction) होता है। इसेक जनन अंग जटिल होते हैं। केंचुर यद्यपि द्विलिंगाश्रयी (monoecious) या उभयलिंगी (her maphroditic) होते हैं, तथापि ये स्व-निषेचन नहीं कर सकते क्योंकि ये पुंपूर्वी (protandrous) होते हैं। अतः इनमें पर-निषेचन (cross fertilization) होता है। पर-निषेचन की क्रिया परस्पर मैथुन और कोया (coccon) निर्माण के पश्चात् होती है।
(1) नर जननांग (Male reproductive organs)-
केंचुए के नर जननांग में वृषण कोश, शुक्राशय, शुक्रवाहक, प्रॉस्टेट ग्रन्थियाँ और सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं।
केंचुआ का वर्गीकरण कीजिए
केंचुआ खाने के फायदे
1. वृषण (Testis)-
अति छोटे, सफेद एवं पालिदार दो जोड़ी वृषण होते हैं, जिनमें से एक जोड़ी 10वें दूसरी 11वें खण्ड में स्थित रहता है। दोनों जोड़ी वृषण आहार नाल के नीचे मध्य-अधर रेखा के साथ तन्त्रिका-रज्जु के दायें-बायें और अपने-अपने वृषण . कोशों की अग्र भित्ति से जुड़े होते हैं। प्रत्येक वृषण में एक संहत सँकरा आधार होता है, जिससे चार से आठ छोटे-छोटे अंगुलाकार प्रवर्ध निकले होते हैं। इन प्रवों में गोलाकार कोशिकाएँ या शुक्राणुजन (spermatogonia) होते हैं। केवल शिशु केंचुओं में वृषण सुनिर्मित होते हैं और वयस्कों में हासित हो जाते हैं।
2. वृषण कोश (Testis sacs)-
प्रत्येक खण्ड के वृषण एक चौड़े, पतली भित्ति के वृषण कोश में बन्द रहते हैं, जो सामान्य शरीर गुहिका (body cavity) से कटा हुआ ही प्रगुही अवकाश (coelomic space) होता है। इस प्रकार दसवें एवं ग्यारहवें खण्डों में दो वृषण कोश होते हैं, जो आहार नाल के नीचे अधर-पाश्र्वीय एक के पीछे दसरा स्थित होता है। प्रत्येक वृषण-कोश के अन्दर एक जोड़ी वृषण और एक जोड़ी पक्ष्माभी शुक्रवाहिनी कीप (ciliated spermiducal funnels) बन्द रहते हैं। ये पीछे की और नली आकार संयोजकों द्वारा अपने से पिछले खण्डों में स्थित शुक्ररायों (seminal vesicles) से जुड़े रहते हैं। 11वें खण्ड का वृषण कोश उसी खण्ड के शुक्राशयों को बन्द रखने के कारण पर्याप्त बड़ा हो जाता है।
केंचुआ कैसे पैदा करें
केंचुए के परिसंचरण तंत्र का वर्णन करें
3. शुक्राशय (Seminal vesicles)-
दो जोड़ी बड़े और सफेद रंग के शुक्राशय क्रमशः 11वें और 12वें खण्डों में होते हैं। इनकी उत्पत्ति पटीय अभिवृद्धि (septal outgrowth) होने के कारण इन्हें पटीय कोश (septal pouch) भी कहा जाता है। दसवें खण्ड का वृषण कोश ग्यारहवें खण्ड के शुक्राशय से जुड़ा रहता है। 11वें खण्ड के शुक्राशय उसी खण्ड के वृषण कोष के अन्दर बन्द रहते हैं जबकि 12वें खण्ड के शुक्राशय स्वतन्त्र होते हैं।
4. शुक्रवाहिनी कीप (Spermiducal funnels)-
दो जोड़ी पक्ष्माभी शुक्रवाहिनी कीप के ठीक पीछे स्थित और वृषण कोशों में बन्द होते हैं।
5. शुक्र वाहक (Vas deferens)-
प्रत्येक कीप पीछे की ओर एक पतले दुबले, पक्ष्माभी, धागे के समान शुक्र वाहक (vas deferens) में खुलता है। एक ओर के दोनों शुक्र वाहक अधर शरीर भित्ति से लगकर पीछे की ओर 18वें खण्ड तक साथ-साथ बढ़कर प्रॉस्टेट वाहिनी से मिल जाते हैं।
केंचुआ का नामांकित चित्र
केंचुआ कितने प्रकार के होते हैं
6. प्रॉस्टेट ग्रन्थियाँ (Prostate glands)-
सफेद रंग की चपटी, ठोस, अनियमित आकार और पालियुक्त पुंजों के रूप में एक जोड़ी प्रॉस्टेट ग्रन्थियाँ होती हैं जो 16वें या 17वें खण्ड से 20वें या 21वें खण्ड तक आहार नाल के दाएँ-बाएँ फैली पाई जाती है। प्रत्येक ग्रन्थि में एक बड़ा ग्रन्थिल और एक छोटा अग्रन्थिल भाग होता है। ग्रन्थिल भाग एक असीमित ग्रन्थि है, जिसमें आपस में जुड़ी कई पालियाँ होती हैं। अग्रन्थिल भाग में कई छोटी-छोटी नलिकाएँ होती है, जो 18वें खण्ड में परस्पर जुड़ जाती हैं और एक छोटी-मोटी, पेशीय और वक्रित प्रॉस्टेट वाहिनी (prostate duct) बनाती हैं। जैसे ही यह वाहिनी ग्रन्थि के भीतरी भाग से बाहर निकलती है, एक सामान्य (common) पेशी आवरण में लिपट जाती है और इसी के साथ इसकी और के दोनों शुक्र वाहक भी इसी में बन्द हो जाते हैं और इस प्रकार एक सामान्य शुक्र और प्रॉस्टेट वाहिनी (common spermatic and prostate duct) बन जाती है, जिसके अन्दर तीनों नलियाँ एक दूसरे से पृथक् रहती है। दोनों सामान्य वाहिनियाँ 18वें खण्ड में मुड़ कर एक जोड़ी नर जननिक छिद्रों (male genital pores) द्वारा अधर तल पर अलग-अलग बाहर खुल जाती हैं। प्रॉस्टेट ग्रन्थियों में एक तरल का निर्माण होता है, जिसे प्रॉस्टेट तरल (pros tatic fluid) कहते हैं और जिसका कार्य अज्ञात है।
7. सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory glands)-
17वें और 19वें खण्डों में से प्रत्येक में एक जोड़ी गोलाकार, सफेद परिफुल्ली (Fluffy) पुंजी सहायक ग्रन्थियाँ शरीर-भित्ति के अधर पार्श्व में तंत्रिका-रज्जु के दोनों और पाई जाती हैं। ये ग्रन्थियाँ कई वाहिनियों द्वारा 17वें तथा 19वें खण्डों के मध्य-अधर रेखा के दोनों और स्थित दो जोड़ी जननिक पैपिलियो (genital papillae) पर बाहर खुलती हैं। इनसे निकलने वाला स्त्राव सम्भवतः मैथुन के समय दो केंचुओं के मिलने में सहायक होता है।
वृषणों में बनी शुक्राणुजनी (spermatogonia) या शुक्राणु मातृ कोशिकाएँ (sperm mother cells) वृषण कोशों में त्याग दी जाती हैं, जहाँ से वे शुक्राशयों में प्रवेश करके परिपक्व होकर शुक्राणुओं में विकसित हो जाती है। परिपक्व शुक्राणु शुक्राशयों से फिर वृषण कोशों में लौट आते हैं, शुक्रवाहिनी कीपों में प्रवेश करते है और शुक्र-वाहकों में पहुँचकर अन्त में मैथुन क्रिया के समय नर जननिक छिद्रों से होकर बाहर चले जाते हैं।
केंचुआ का जीवन चक्र
केंचुए के आहार नाल का वर्णन
(II) मादा जननांग (FEmale reproductive organs)-
अण्डाशय (ovaries), अण्ड वाहिनियाँ (oviducts) और शुक्र ग्राहिकाएँ (spermathecae) मिलकर मादा जननांग बनाते हैं।
1. अण्डाशय (Ovaries)-
13वें खण्ड में एक जोड़ी छोटे, सफेद, अण्डाशय होते हैं, जो इसी खण्ड के अगले पट (12/13) के पिछले तल के साथ गले रहते हैं तथा तंत्रिका रज्जु के दोनों और रहते हैं। प्रत्येक अण्डाशय सफेद रंग का एक संहत पुंज होता है. जो अंगली के समान प्रवों का बना होता है। इन प्रवर्षों में विकास विभिन्न अवस्थाओं में अण्डाणु एक रैखिक श्रेणी में व्यवस्थित रहते हैं।
2. अण्डवाहिनी कीप (Oviducal funnels)-
13वें खण्ड में प्रत्येक अण्डाशय के ठीक पीछे बड़ी प्लेट के समान एक अण्डवाहिनी कीप पाया जाता है, जिसके किनारे अति वलित (folded) और पक्ष्माभी होते हैं।
3. अण्डवाहिनियाँ (Oviducts)-
प्रत्येक कीप पीछे की ओर एक छोटी शंकु आकार पक्ष्माभी नली, अण्डवाहिनी में खुलता है। दोनों अण्डवाहिनियाँ पीछे की ओर बढ़कर 13वें तथा 14वें खण्डों के बीच के पट को भेद कर 14वें खण्ड में तंत्रिका रज्जु के नीचे परस्पर मिल जाती हैं और एक अति छोटी सामान्य अण्डवाहिनी (common oviduct) बनाती हैं। यह सामान्य अण्डवाहिनी इसी खण्ड के मध्य में मादा जननिक (female genital aperture) द्वारा अधर तल पर बाहर खुल जाती है।
4. शुक्रग्राहिकाएँ (Spermathecae)
ये चार जोड़ी छोटी-छोटे फ्लास्क के आकार की संरचनाएँ होती हैं, जिन्हें शुक्र-ग्राहिकाएँ या शुक्राधान (receplacula seminales) कहते हैं। ये छठे, सातवें, आठवें तथा नवें खण्डों में अधर-पाश्र्व तल पर एक-एक जोड़ी होती हैं। प्रत्येक शुक्रग्राहिका में एक नाखाकार काय (pear-shaped), तुम्बिका (ampula) और एक छोटी सँकरी ग्रीवा (neck) होती है। बाहर खुलने से पहले ग्रीवा से एक सँकरी लम्बी अंध सीकम (caecum) या अंधवर्ध (diverticulum) निकलती है। शुक्रग्राहिकाएँ चार जोड़ी शुक्रग्राहिका छिद्रों (spermathecal openings) द्वारा बाहर खुलती हैं। ये छिद्र क्रमश: 5/6, 6/7,7/8, 8/9 खण्डों के बीच खाँचों में अधर-पार्श्व तल पर स्थित होते हैं। मैथुन क्रिया के अन्तर्गत एक केंचुआ दूसरे केंचुए से शुक्रग्राहिकाओं में शुक्राणु प्राप्त करता है और कैरिटिमा उन्हें अन्ध-सीकम में तथा दूसरे केंचुए तुम्बिकाओं में संचित रखते हैं।
अण्डाशयों से निकते हुए परिपक्व अण्डाणु (ova) अण्डवाहिनी कीपों द्वारा उलझा लिये जाते हैं, जहाँ से वे अण्डवाहिनियों द्वारा मादा जननिक छिद्र से कोए (cocoon) में इकट्ठे कर दिये जाते हैं।
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Zoology