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केंचुए का आर्थिक महत्व

केंचुओं का आर्थिक महत्व

केंचुए के आर्थिक महत्व पर एक निबन्ध लिखिए

आर्थिक महत्व (Economic Importance)-

केंचुए साधारण एवं सामान्य प्राणी हैं, जो मानव के लिए बड़े आर्थिक महत्व के हैं। यद्यपि ये छोटे अवश्य होते हैं, तथापि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे लिए लाभदायक हैं। इनकी अनुपस्थिति में पृथ्वी का स्वरूप ही भिन्न हो गया होता।
केंचुआ खाने के फायदे
केंचुआ किस संघ का प्राणी है

1. प्रलोभक और भोजन की भाँति (As bait and food) 

विश्व भर में मत्स्यन (fishing) के लिए इनका प्रलोभक की भाँति उपयोग किया जाता है। बड़ी संख्या में संकलन करने के लिए इन्हें बिलों से बाहर निकालने हेतु विविध प्रकार के उपाय किए जाते हैं, जैसे छड़ को मिट्टी में धंसा कर घुमाना, विषैले रासायनिक पदार्थों जैसे मक्यूंरिक क्लोराइड के घोल को बिलों में डालना और एक निम्न विद्युत् धारा को प्रवाहित करना, इत्यादि। जलजीवशालाओं (aquaria) में पाली गई मछलियों के लिए ये सबसे प्रिय भोजन होते हैं। सफेद रंग का एक छोटा केंचुआ एन्काइट्रियस ऐल्बाईडस (Enchytraeus albidus) मिट्टी में पनपता है और जलजीवशाला की मछलियों एवं प्रयोगशाला के छोटे-छोटे जन्तुओं को खिलाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। विश्व के अधिकाँश असभ्य व्यक्ति भी इन्हें भोजन के रूप में लेते हैं। कुछ पक्षी, जैसे रॉबिन और चूजे इन्हें बड़ी संख्या में भोजन की भाँति खाया जाता है।
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केंचुआ का लक्षण

2. कृषि में (In agriculture)-

सामान्यतः केंचुए कृषि के लिए बड़े उपयोगी होते हैं। यद्यपि ये कभी-कभी नवजात एवं कोमल पौधों के लिए क्षति पहँचा सकते हैं, तथापि ये माली तथा किसान के अच्छे मित्र होते हैं, क्योंकि ये निरन्तर मिटी को जोतते तथा खाद पहुँचाते रहते हैं। बिल बनाते रहने तथा मिट्टी को निगलने के इनके स्वभाव से मिटी की उर्वरा शक्ति (fertility) अनेक प्रकार से बढ़ती रहती है। इनके बिलों द्वारा वायु एवं नमी छिद्रित (porous) भूमि में सुगमतापूर्वक प्रवेश कर जाती है, जल निकास सुगम हो जाता है और पौधों की जड़ों का नीचे की ओर बढ़ना सरल हो जाता है। इनकी पेषणी में मिट्टी को भली-भाँति पीसा जाता है, इस क्रिया द्वारा मिटी प्रभावकारी कृषि योग्य बन जाती है। केंचुए पौधों की मृत पत्तियों के टुकड़ों को निरन्तर अपने बिलों में इकट्ठा करते रहते हैं, जिससे उन्हें बिल में जाने में सुविधा के साथ भोजन भी प्राप्त होता है। परन्तु केंचुओं द्वारा आंशिक रूप से ही उन्हें खाया जाता है तथा उनके अवशेष केंचुए की क्षिप्तियों के साथ मिलकर एक प्रकार का उर्वरक (humus) मिट्ी को देते हैं। इस प्रकार केंचुए ने पुरातन काल से ही अधिकांश वनस्पति ढाँचों को बनाया है। इसके विपरीत यह भी एक सत्यता है कि एक अनउपजाऊ भूमि में केंचुए छोड़कर उसे उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता है। केंचुओं द्वारा त्यागे गए मल तथा शरीर से स्त्रवित अन्य नाइट्रोजनी पदार्थों द्वारा भी मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि होती है, केंचुओं द्वारा नीचे की मिट्टी को भूमि की ऊपरी सतह पर निरन्तर में लगभग 50,000 केंचुए होते हैं और डार्विन के अनुमानानुसार इनके द्वारा प्रति वर्ष प्रति एकड़ भूमि की लगभग 18 टन मिट्टी को नीचे से ऊपरी सतह पर लाकर क्षिप्तियों के रूप में बिछा दिया जाता है। आजकल मिट्टी की उर्वरता को उच्च श्रेणी की करने के लिए केंचुओं के सम्वर्धन की आवश्यकता पर अधिक ध्यान दिया जाता रहा है। केंचुए का आर्थिक महत्व

3. औषधियों में (In medicines)-

प्राचीन काल में केंचुए विविध प्रकार से औषधि ग्यों में प्रयोग किए जाते थे। काज़वीन के हमदुल्लाह मुस्तकी (Hamdullah Mustafi of Quzwin) ने 1340 में तथा डुमारी (Dumari) ने 1371 में अपनी-अपनी पुस्तकों क्रमशः 'नेजत-उल-कुतुब' (Naizat-ul-Qutub) तथा 'हयात-उल-हैवान' (Hayat ul-Haiwan) अर्थात् 'जन्तुओं का जीवन में बताया है कि केंचुओं से तैयार की गई विविध औषधियाँ पित्ताशय की पथरी (stones of gall bladder), पीलिया (jaun dice), पाइरिया (pyorrhea), बवासीर (piles), गठिया (rheumatism or gout), अतिसार (diarrhoea), गर्भावस्था के बाद की दुर्बलता एवं लैंगिक नपुंसकता (sexual impotency) आदि रोगों के उपचार में प्रयोग की जाती हैं। यहाँ तक कि आज भी चीनी, जापानी और भारतीय बहुत-सी औषधियों में केंचुओं का प्रयोग किया जाता है।
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4. प्रयोगशालाओं में (In laboratories)-

केंचुए आसानी से प्राप्त हो जाते हैं और विच्छेदन क्रिया (dissection) के लिए इनका परिणाम भी काफी बड़ा होता है। इसलिए इन्हें संसार भर में कक्षाध्ययन (Class study) हेतु प्रयोग किया जाता है। साधारणतः इन्हीं के द्वारा अनुसन्धान (investigations) और तुलनात्मक कार्यिकी (comparative physiology) का भी अध्ययन किया जाता है।
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5. हानिकारक केंचुए (Harmful worms)-

कुछ मामलों में केंचुए हानिकारक भी होते हैं। इनके बिल सींची हुई भूमि में खाइयों से निस्यंदन (seepage) द्वारा जल की हानि कर देते हैं। ढालू भूमि पर होने वाली इनकी क्षिप्तियाँ (castings) वर्षा के जल के साथ बह जाती हैं और इस प्रकार से ये मिट्टी के कटाव या मृदा अपरदन (soil erosion) में सहायता करते हैं, परन्तु बहुत कम। इनकी कुछ जातियाँ मेंढ़कों तथा मनुष्य के बाह्य परजीवियों की भाँति रहती है। कभी-कभी ये परजीवी पृथ्वी में गड़े हुए जन्तुओं के शवों में दब जाते हैं। और रोगाणुओं को ऊपरी सतह पर लाने के साधन बन जाते हैं, जिससे अन्य जन्तुओं में भी संक्रमण उत्पन्न होने की सम्भावना हो जाती है। केंचुए कुछ परजीवियों के संचरण (transmission) में मध्यस्थ परपोषी का कार्य भी करते हैं, जैसे अमीबोटीनिया स्फेनाइडीस (Amoebotaenia sphenoides) फीताकृमि, चूजों का गेपवर्म सिनोमस (Syngamus) और सुअरों के फुफ्फुसो का निमेटोड मेटास्ट्रॉन्जिलस एलॉन्गेटस (Metastrongylus elongatus) इन परजीवियों में से अन्तिम परजीवी एक विषाणु (virus) का भी वाहक होता है, जो एक जीवाणु के साथ मिलकर होग इन्फ्लूएन्जा अथवा स्वीन (swine) इन्फ्लूएन्जा उत्पन्न करता है। इनकी कुछ जातियाँ पौधों के नाशक जीव (pests) हो जाती हैं। ऐसा समझा जाता है कि कोयम्बटूर में फेरेटिमा एलॉन्गेटा (Pheretima elongata) पान की बेल (betel-vine or piper betel) की जड़ों को हानि पहुँचाता है। मालावार में मलाबारिआ पैडुडीकोला (Malabaria podudicola) और ऐफेनेस्कस ओरीजीवोरस (Aphanascus oryzivorus) धान की जड़ों को हानि पहुँचाते हैं। पेरीऑनिक्स (Perionyx) की एक जाति दक्षिण भारत की अनामलाई पहाड़ियों पर उले इलायची के पौधों के तनों को हानि पहुँचाती है।
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Kkr Kishan Regar

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