पैलीमाॅन में उत्सर्जी अंगों एवं उत्सर्जन की प्रक्रिया का वर्णन

पैलीमॉन में उत्सर्जी अंगों एवं उत्सर्जन की प्रक्रिया का वर्णन


उत्सर्जी तंत्र (Excretory System)-

वयस्क पैलीमॉन के उत्सर्जी-तंत्र में (i) एक जोड़ी श्रृंगिकी या हरित ग्रन्थियाँ (Antennary or green glands), (ii) एक जोड़ी पार्व वाहिनियाँ (lateral ducts), (iii) एक रीनल या वृक्क पर्युदर्या कोष (renal or nephroperitoneal sac) और (iv) अध्यावरण (intergument) नामक भाग होते हैं। इसमें वास्तविक वृक्ककों का अभाव होता है।

1. श्रृंगिकी या हरित ग्रन्थियाँ (Antennary or green glands)-

प्रत्येक श्रृंगिका के कक्षांग (coxa) में एक ऐंटीनरी ग्रन्थि होती है, जो पारांध-श्वेत (opaque white) और मटर के बीज के बराबर होती है। इसके तीन भाग होते हैं-(a) अन्तिम कोष (end sac), (b) कलागहन या ग्रन्थिल जालक (labyrinth or glandular plexus) और (c) आशय (bladder)|
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(a) अन्तिम कोष (End sac)-

सेम के आकार का अन्तिम कोष (end sac) सबसे छोटा भाग है, जो आशय और कला गहन के बीच स्थित रहता है। इसके अन्दर एक बड़ी रुधिर-अवकाशिका (blood lacuna) होती है। इसकी भित्ति में दो स्तर होते हैं और यह केन्द्रीय गुहिका में अरीय-पटों (ra dial septa) के रूप में उभरी रहती है। भित्ति की बाहरी मोटी पर्त संयोजी ऊतक की बनी होती है जिसमें छोटी-छोटी असंख्य रुधि पर-अवकाशिकाएँ होती हैं। जबकि अन्दर की पतली पर्त में बड़ी-बड़ी उत्सर्जी उपकला कोशिकाएँ होती है
अन्तिम कोष (End sac)

(b) कलागहन (Labyrinth)-

कलागहन या प्रन्थिल-जालक (glandular plexus) अन्तिम कोष की अपेक्षा बड़ा होता है और उसकी बाहरी सतह पर स्थित रहता है। यह असंख्य सँकरी, शाखादार एवं अधिक कुण्डलित उत्सर्जी नलिकाओं (excretory tubules) का बना होता है, जो संयोजी ऊतक के पिण्ड में धंसी पायी जाती है। संयोजी ऊतक के पिण्ड में रुधिर अवकोशिकाएँ पाई जाती हैं। ये नलिकाएँ बड़ी-बड़ी उत्सर्जी उपकला कोशिकाओं की एक पर्त द्वारा आस्तरित रहती है। ये एक छिद्र द्वारा अन्तिम कोष में ओर बहुत से छिद्रों द्वारा आशय में खुलती है।

(c) आशय (Bladder)-

यह सबसे बड़ा भाग होता है तथा अन्तिम कोष के अन्दर की ओर स्थापित रहता है। यह उत्सर्जी उपकला कोशिकाओं के इकहरे स्तर का बना एक कोष होता है। इसकी अन्दर की भित्ति उभरकर एक छोटी मूत्रवाहिनी या यूरेटर (ureter) बनाती है। यूरेटर एक छोटे गोल उत्सर्जी छिद्र (renal aperture) द्वारा बाहर खुलता है जो श्रृंगिका के कक्षांग की आन्तरिक सतह पर एक पैपिला (papilla) के ऊपर स्थिर रहता है।

2. पार्व वाहिनियाँ (Lateral ducts)-

प्रत्येक श्रृगिकी ग्रन्थि के ब्लैडर से पीछे की ओर एक सँकरी पार्श्व वाहिनी निकलती हैं। दोनों ओर की पार्श्व वाहिनियाँ मस्तिष्क के सामने एक अनुप्रस्थ संयोजक (transverse connective) द्वारा परस्पर जुड़ जाती हैं तत्पश्चात् दोनों ग्रसिका के साथ पीछे की ओर बढ़कर वृक्क कोष (renal sac) में खुलती हैं।

3. रीनल या वृक्क पर्युदर्या कोष (Renal or nephroperitoneal sac)-

यह जठरागमी आमाशय के ऊपर एवं पृष्ठवर्म (carapace) के ठीक नीचे स्थित पतली भित्ति का बना एक बड़ा कोष होता है, जो पीछे की ओर जनन ग्रन्थियों तक फैला रहता है। इसकी भित्ति में चपटी उत्सर्जी उपकला कोशिकाओं का एक स्तर होता है।

उत्सर्जन की कार्यिकी (Physiology of excretion)-
जटिल वृक्ककों के समान रचना वाली श्रृंगिकी ग्रन्थियाँ रुधिर से नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों एवं परासरण नियमन हेतु जल की अतिरिक्त मात्रा को उसी प्रकार पृथक करती हैं, जिस प्रकार कशेरुकी जन्तुओं में वृक्क करते हैं। अमोनिया के यौगिक अन्तिम कोषों द्वारा तथा यूरिक अम्ल और नाइट्रोजन के अन्य यौगिक दुसरे भागों द्वारा पृथक किये जाते हैं। अन्तिम कोषों द्वारा पृथक किया गया उत्सर्जी तरल कला गहन में आता है, जहाँ उसमें से वरणात्मक पदार्थ फिर से रुधिर में पहुँच जाते हैं। शेष तरल मूत्र को आशयों में इकट्ठा किया जाता है और अन्त में वृक्कीय छिद्रों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

4. अध्यावरण (Integument) 

प्रत्येक निर्मोचन (moult) के समय शरीर द्वारा स्त्रवित नाइट्रोजनी उत्पाद, जो अध्यावरण पर जम जाते हैं, अध्यावरण के साथ ही उतरते रहते हैं। अतः अध्यावरण को भी एक प्रमुख उत्सर्जी अंग समझा जाता है।
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तंत्रिका तंत्र (Nervous System)-

यद्यपि झींगे का तन्त्रिका तंत्र ऐनेलिड प्रकार का होता है, तथापि उसकी अपेक्षा कुछ बड़ा और इसमें कुछ अधिक गुच्छिकाएँ संगलित पाई जाती हैं। इसकी रचना में निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-
(i) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system), जिसमें मस्तिष्क एक जोड़ी परिग्रसिका संघ नियों द्वारा गुच्छिकित उधर तंत्रिका रज्जु से जुड़ा होता है, 
(ii) विभिन्न तंत्रिकाओं सहित परिधीय तंत्रिका तंत्र (peripheral nervous system) और 
(iii) अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system)।

1. मस्तिष्क या अधि-ग्रसिका गुच्छिकाएँ (Brain or supra-oesophageal ganglia)-

मस्तिष्क ग्रसिका से आगे तुंड (rosturm) के आधार पर होता है तथा चारों और से वसा के एक मोटे पिण्ड से घिरा रहता है। यह दो पालिदार संरचना है जो कई गुच्छिकाओं के संगलन से बनी होती है। मस्तिष्क के दोनों ओर से निम्नलिखित तंत्रिकाएँ निकलती हैं-(i) एक लघु श्रृंगिकी तंत्रिका (antennulary nerve) अपनी ओर की लघु श्रृंगिका को जाती हैं। जिससे एक सन्तुलन पुटी शाखा (statocystic branch) सन्तुलन पुटी (statocyst) में जाती है, (ii) एक दृढ़ दृष्टि-तंत्रिका (optic nerve) संयुक्त नेत्र (compound eye) को, (iii) नेत्र-वृन्त की पेशियों को जाने वाली एक नेत्र-तंत्रिका (ophthalmic nerve), (iv) श्रृंगिका को जाने वाली एक श्रृंगिकी-तंत्रिका (antennary nerve), और (v) लेब्रम को जाने वाली एक पतली अध्यावरण तंत्रिका (tegumentary nerve)|
मस्तिष्क या अधि-ग्रसिका गुच्छिकाएँ (Brain or supra-oesophageal ganglia)


2. परिग्रसिका संधानियाँ (Circum-oesophageal commissures)-

मस्तिष्क के पीछे की और से एक जोड़ी दृढ़ तंत्रिकाएँ परिग्रसिका संधानियाँ निकलती हैं। ये दोनों पीछे एवं नीचे की ओर बढ़ती हुई तथा ग्रसिका को घेरती हुई इसकी नीचे अधोग्रसिका गुच्छिकाओं (sub-oesophageal ganglia) से मिल जाती हैं। यह अधर वक्षीय गुच्छिका पुंज (Ventral thoracic ganglionic mass) का अविभेदित अगला भाग बनाती है। ग्रसिका के ठीक पीछे दोनों संधानियों के ऊपर संयोजक के ऊतक का एक दृढ़ और दोहरा सेतु होता है, जिसे अन्तरधरकांश (endosternite) कहते हैं। प्रत्येक संधानी के अग्र छोर के निकट एक छोटी संधानी गुच्छिका (commissural ganglion) होती है, जिससे एक छोटी चिबुक तंत्रिका (Imandibular nerve) निकल कर अपनी ओर के चिबुक में जाती है। दोनों संधानियाँ परच छोर के निकट एक अनुप्रस्थ संयोजक (transverse connective) द्वारा एक दूसरे से जुड़ी रहती है।

3. अधर वक्षीय गुच्छिका पुंज (Ventral thoracic ganglionic mass)-

जिस प्रकार शिरोवक्ष में सिर एवं वक्ष के खण्ड परस्पर संगलित हो जाते हैं उसी प्रकार इस भाग की खण्डीय तंत्रिका गुच्छिकायें भी संगलित होकर एक लम्बे आकार का अधर वक्षीय तंत्रिका गुच्छिका पुंज या वेन्ट्रल थोरैसिक गैंगलियोनिक मास तंत्रिका गुच्छिका पुंज या वैन्ट्रल थोरेसिक गैंगलियोनिक मास बनाती है, जो शिरोवक्ष के मध्य-अधर भाग में स्थिर रहता है। यह पुंज 11 जोड़ी गुच्छिकाओं के संगलन को निरूपित करता है और इसकी दोनों पावों से 11 जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती है। पहली तीन जोड़ी शीर्ष तंत्रिकाएँ (cephalic nerves) होती है, और क्रमश: चिबुकों (mandibles),लघुगिकाओं (maxillulae) ओर श्रृंगिकाओं (maxillae) में जाती हैं। पीछे की आठ जोड़ी वक्षीय तंत्रिकाए (thoracic nerves) होती है, जिनमें से पहली तीन जोड़ी जम्भ पादकों (Imaxillipedes) में और शेष पाँच जोड़ी तंत्रिकाएँ पाँचों जोड़ी चलन टाँगों में जाती हैं। टाँगों में जाने वाली प्रत्येक तंत्रिका टाँग में प्रवेश करने से पूर्व दो शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं।

4. अधर तंत्रिका रज्जु (Ventral nerve cord)-

अधर वक्षीय गुच्छिका पुंज के पिछले सिरे से एक मोटा अधर या उदरीय तंत्रिका रज्जु निकलता है और उदर की मध्य-अधर रेखा पर पीछे तक फैला होता है। यह प्रत्येक उदरीय खण्ड में फूलकर एक उदरीय गुच्छिका (abdominal ganglion) बनाता है। प्रथम पाँचों उदरीय गुच्छिकाओं में से प्रत्येक गुच्छिका से तीन जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती है-(i) एक जोड़ी पाद तंत्रिकाएँ (pedal nerves) प्लवपादों के लिए, (ii) एक जोड़ी प्रसारिणी पेशियों (extensormuscles) के लिए, तथा (iii) एक जोड़ी इससे पिछले खण्ड की आकोचनी पेशियों (flexor muscles) के लिए। अन्तिम या छठी उदरीय या ताराकार गुच्छिका (stellate ganglion) अन्य गुच्छिकाओं की अपेक्षा बड़ी और कई गुच्छिकाओं के संगलन से बनी होती है। इससे दो जोड़ी तंत्रिकाएँ आकोचनी पेशियों को, दो जोड़ी यूरोपोड़ों को, दो जोड़ी टेल्सन को और केवल एक मध्यवर्ती तंत्रिका परच आहार नाल को जाती है।
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5. अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Sympathetic nervous system)-

अनुकम्पी (sym pathetic),अंतरांग (visceral) या स्वायत्त (autonomic) तंत्रिका तंत्र कुछ गुच्छिकाओं एवं तंत्रिकाओं का बना होता है। मस्तिष्क के मध्य-पश्च भाग से निकली एक छोटी तंत्रिका में आगे-पीछे दो अंतरांगीय गुच्छिकार (visceral ganglia) होती है। इनमें से पहली गुच्छिका एक जोड़ी संयोजकों की सहायता से दो संधानी गुच्छिाकाओं (com missural ganglia) से जुड़ जाती है। दूसरी गुच्छिका से दो जोड़ी तंत्रिकाएँ ग्रसिका एवं जठरागमी आमाशय की भित्तियों को जाती हैं।
Kkr Kishan Regar

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