झींगे के नेत्र की संरचना तथा भोजन स्त्रोत
झींगे के नेत्र की संरचना का वर्णन कीजिए। तथा इसके भोजन स्त्रोत बताईये।
पेनिअस इन्डिकस-समुद्री झींगा (Penaeus indicus-Marine Prawn)-
1. संरचना (Structiure)-
पेनिअल इन्डिकस (Penaeus indicus) एक छोटा, सर्वसाधारण समुद्रवासी झींगा है, जो भारतीय समुद्रों में पाया जाता है। यह भारतीय स्वच्छ जलीय झींगे मैक्रोब्रेकियम (Macrobrachium) या पैलीमॉन माल्कोम्सोनाई (Palaemon malcolmsonii) से बहुत कम भिन्नता प्रकट करता है। यह अपेक्षाकृत छोटा लगभग 1.5 से 20 सेमी लम्बा होता है। इसका अध्यावरण पतला और रंग अपेक्षाकत हल्का होता है। लघु श्रृंगिकाओं की अपेक्षा श्रृंगिकाएँ लम्बी होती हैं। जम्भिकाओं के अन्त:पादांश (en dopodites) लम्बी होती हैं।
झींगा खाने के फायदे
झींगा की खेती
झींगा मछली का चित्र
झींगा पालन
जम्भिकाओं के अन्तः पादांश (endopodites) लम्बे और सखण्ड होते हैं। वक्षीय टाँगों में बहि पादास (exopodites) और अधिपादांश (epipodites) छोटे होते हैं पहली तीन जोड़ी टाँगें कीलाभ (chelate) होती हैं। इसका उदर दोनों पाश्र्वोसे संकीर्णित और पैलीमॉन के तीक्ष्ण रूप से मुड़े उदर से भिन्न सीधा होता है। प्रथम उदरी खण्ड के प्लूरा (pleura) दूसरे खण्ड के प्लूरा के ऊपर चढ़े होते हैं। प्लवपाद (pleopods) द्विशाखी होते है परन्तु उनके अन्तःपादांशों पर अंगुली के समान प्रवर्ध अपेडिक्स इन्टर्ना (appendix interna) का अभाव होता है। नर में प्रथम जोड़ी प्लवपादों के अन्तः पादांश कलामय और हुकों द्वारा परस्पर जुड़े होते हैं। इस प्रकार वे पेटेस्मा (petasma) नामक उपकरण की रचना करते हैं। यह उपकरण मैथुन के समय शुक्राणुओं के स्थानान्तरण में सहायक होता है। मादा के अन्तिम वक्षीय खण्ड के अधरक (sternum) से एक खोखली अभिवृद्धि निकलती है, जिसे थेलीकम (thelycum) कहते हैं। नर इसी थेलीकम की गुहिका में शुक्राणुधरों का स्थापित करता है। इसके गिल द्रुमक्लोमी (dendrobranchiate) होते है, प्रत्येक गिल में एक अक्ष होती है जिसके दोनों पाश्वों में असंख्य शाखित पाश्वर्वीय तन्तु होते हैं।
2. जीवन चक्र (Life history)-
इसका परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है। अण्डे से नौप्लिअस लारवा (nauplius larva) निकलता है। यह कायान्तरण द्वारा कई लारवीय अवस्थाओं जैसे मेटानौप्लिअस (metanauplius), प्रोटोजोइया (protozoaea), जोइया (zoaea) और माइसिस (mysis) से गुजरकर वयस्क बनता हैं।
भोजन के स्त्रोत के रूप में क्रस्टेशियाई प्राणी (Crustaceans as Source of Food) हमारे भोजन में प्रोटीन एक ऐसा पदार्थ है, जो शरीर के ऊतकों के निर्माण हेतु अति आवश्यक होता है, इसीलिए इसकी हमें प्रतिदिन आवश्यकता होती है। प्रोटीन इतना आवश्यक पदार्थ होते हुए भी कितने ही देशों के लाखों मनुष्य प्रोटीन कपोषण (protein malnutrition) से पीड़ित है, क्योंकि प्रोटीनयुक्त, विशेषकर प्राणी प्रोटीन युक्त भोजन अपेक्षाकृत मूल्यवान होता है। मनुष्य के भोजन में होने वाली प्रोटीन की कमी को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय समद्री भोजन (marine food) ग्रहण करना है, क्योंकि इसमें प्रोटीन अवयव की अधिकता होती है। मनुष्य द्वारा ग्रहण किए जाने वाले समुद्री भोजन के प्रमुख प्रकार मछली, द्विकपाटी मोलस्क (bivalve molluses) और दसपादी क्रस्टेशियाई (decapod crustaceans) होते हैं।
क्रस्टेशियाई प्राणियों की एक बड़ी संख्या, विशेषकर लॉब्स्टर (lobsters), श्रिम्प (shrimps), झींगे (prawns), स्क्विला (squillae), केकड़े (crabs), क्रेफिश (cray fishes), इत्यादि मनुष्य द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण की जाती है। इन सब का पोषक मान (nutritive value) अधिक होता है और ये मनुष्य का प्रमुख भोजन बनाते हैं। इनका समस्त उदर अधिक पेशीय होता है और सबसे अच्छे खाने योग्य होता है।
इनकी आकोचनी पेशियाँ (flexor muscles) विशेष रूप से स्थूल होती है। इनके करजपादों (chelipedes) में भी कुछ अच्छा 'माँस' (meat) पाया जाता है। कीचड़वासी केकड़ों के पँजे सबसे अच्छे खाए जाने वाले भाग होते है। इनकी माँसपेशियों को तत्काल पकाकर या डिब्बा बन्द लेकर खाया जाता है। नीले केकड़े या कलीनिक्टीज (Chellinectes) को निर्मोचन के बाद कोमल कवचधारी अवस्था में ही बेचा जाता है। इसके अन्तराँगों को निकालकर शेष सम्पूर्ण प्राणी को पकाकर खाया जाता है। श्रिम्पों और झीगों को सम्पाशी जालों (seines) द्वारा पकड़ा जाता है, परन्तु केकड़ों, लॉब्स्टरों और क्रेकिशों को धातु के तार या लकड़ी या जाल के पिंजरों में प्रलोभक (baits) द्वारा प्रलोभित करके पकड़ते हैं। झींगा मत्स्यन (prawn fishery) जिसका अर्थ होता है झींगों को पकड़ना और उनका सम्वर्धन करना (cultur ing), भारत सहित बहुत से देशों में पर्याप्त रूप से विकसित हो गया है। ऑस्ट्रेलिया में इस स्वादिष्ट भोजन की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए स्वच्छ जलीय झींगों का व्यापारिक स्तर पर खेती कर प्रयोग किया जा रहा है।
झींगा का वर्गीकरण
झींगा संवर्धन पर एक निबंध
झींगा मछली पालन का विस्तार से वर्णन कीजिए
झींगा संवर्धन पर निबंध
क्रस्टेशियाई प्राणियों की छोटी-छोटी जातियाँ मिलकर एक प्राणिप्लवक (Z00p lankton) पुंज बनाती हैं, जो हमारे भोजन में काम आने वाले समुद्री एवं स्वच्छ जलीय मछलियों तथा अन्य जलीय प्राणियों की भोजन श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण भाग बनाता है। मनुष्य मछलियों को खाता है। ओर सभी मछलियों के परिवर्धन में एक अवस्था ऐसी होती हैं जिसमें वे छोटे क्रस्टेशियाई रूपों, जैसे किश के समान बड़े जन्तुओं के लारवा तथा साइक्लॉप (Cyclops) और डेफ्निआ (Dophnia) की कुछ छोटी-छोटी वयस्क अवस्थाओं को अवश्य खाती है। हेल (whales), जिनका मनुष्य विविध प्रकार के व्यापारिक उत्पादनों हेतु शिकार करता है, अपने भोजन के लिए क्रस्टेशियाई प्राणियों हेतु शिकार करता है, अपने भोजन के लिए क्रस्टेशियाई प्राणियों पर निर्भर रहती है। इसी प्रकार सील, समुद्र गुल (sea gulls) और पेंग्विन के समान अन्य प्राणियों के भोजन में एक बड़ा भाग उभयपद प्राणियों (amphipods) तथा यूफोडिस प्राणियों (euphausids) का होता है। एक नीली हेल के आमाशय में से 5 मी. लम्बे लगभग दो टन भार के समुद्री कॉपिपोड कैलानस (Calanus) प्राप्त हो चुके हैं। जल जीवालय का व्यवस्था करने वाले आर्टीमिआ (Artemia) और डैफिनआ (Daphnia) के वयस्कों एवं अंडों को संकलित करके उन्हें मत्स्य-आहार (fishfood) की भाँति बेचते हैं।
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Zoology