पाचन तंत्र
पाचन तन्त्र द्वारा जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है। शरीर के जो अंग इस कार्य में सहायक होते हैं, नाचन अंग कहलाते हैं। पाचन तन्त्र को निम्न 5 भागों में बाँट सकते हैं
1. पाचन अंग,
2. पाचन,
3. अवशोषण,
4. स्वांगीकरण,
5. बहिःक्षेपण।
पाचन तंत्र
मनुष्य के पाचन तन्त्र
(Human Digestive System)
मनुष्य के पाचन तन्त्र में निम्नलिखित अंग सम्मिलित होते हैं
1. मुख गुहा,
2. आहार नाल, तथा
3. पाचन ग्रन्थियाँ।
पाचन तंत्र
1. मुखगुहा
- यह पाचन अंगों में सबसे पहला अंग है। मुखगुहा बाहर से दो माँसल चल होंठों से घिरी रहती है। मुखगुहा में ऊपर की ओर तालू होता है। दोनों पावों में गाल होते हैं। मुखगुहा की दीवारों में लगी लार ग्रन्थियाँ होती हैं। इसमें दो जबड़े होते हैं। ऊपरी जबड़ा अचल होता है तथा निचला जबड़ा चल होता है। मुखगुहा में जीभ, दाँत तथा 4 जोड़ी लार ग्रन्थियाँ सम्मिलित होती हैं। जीभ पर स्वाद कलिकाएँ होती हैं। मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। ग्रसनी में एकदम अन्दर एक बड़ा छिद्र स्थित होता है, जिसे निगल द्वार कहा जाता है। इसके सामने ऊपर से मुलायम तालु लटकता है, जिसे युवुला कहते हैं। इसी प्रकार जीभ के अन्तिम सिरे पर पीछे की ओर निगल द्वार के आसपास टॉन्सिल नामक फूले हुए स्थान होते हैं।
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2. मनुष्य की आहर नाल
(i) ग्रासनली—
इसे ग्रसिका भी कहते हैं। यह संकरी तथा लगभग 25 सेमी. लम्बी पेशीय नली है। यह गर्दन से होती हुई वक्ष गुहा में आमाशय में खुलती है।
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(ii) आमाशय
यह एक थैले के समान पेशीय अंग है, जो उदर गुहा में बायीं ओर डायफ्राम के नीचे स्थित होता है। ग्रासनली का अन्तिम सिरा आमाशय में खुलता है। यह लगभग 30 सेमी. लम्बा और कॉर्डियक, पंडिक तथा पाइलोरिक भागों में बँटा होता है। इन भागों के भीतर की परत में जठर ग्रन्थियाँ होती हैं, जो पाचक रस बनाती हैं। जठर ग्रन्थियों में जठर रस निकलता है।
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(ii) छोटी आँत-
छोटी आँत लगभग 7 मीटर लम्बी होती है तथा आमाशय से आरम्भ होती है। छोटी आँत में भोजन का पाचन तथा अवशोषण होता है। छोटी आंत के अग्र भाग को ग्रहणी कहते हैं। इसमें पित्तवाहिनी तथा अग्नयाशयवाहिनी खुलती है। पित्तवाहिनी से यकृत में बना पित्त रस और अग्न्याशयवाहिनी से अग्न्याशय में बना आन्याशयिक रस यहाँ भोजन में मिलता रहता है। पहले पित्त रस कार्य करता है तथा बाद में अग्न्याशयिक रस कार्य करता है। ग्रहणी के आगे शेष छोटी आंत में आन्त्रीय रस का स्राव होता है। यहाँ भोजन का पाचन पूर्ण होता है और पचा हुआ भोजन रुधिर में अवशोषित हो जाता है। अवशोषण कार्य अनेक छोटे अंगुलाकार प्रवर्णों द्वारा हाता है, जिन्हें रसांकुर कहते हैं। यह छोटी आंत की भीतरी भित्ति से निकले रहते हैं और अवशोषण क्षेत्र बढ़ाते हैं।
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(iv) बड़ी आँत
छोटी आंत के निचल भग में बड़ी आँत या वृहदान्त्र प्रारम्भ होती है। यह लगभग 15 मीटर लम्बी होती है तथा तीन भागों में बँटी होती है— सीकम, कोलन और रेक्टम। सीकम एक थैले के समान होती है। इसमें एक 5-7 सेमी. लम्बी अंगुली जैसी नली जुड़ी रहती है, जिसको अपेन्डिक्स कहते हैं। इसका शरीर में कोई विशेष महत्त्व नहीं है। रेक्टम, जिसको मलाशप कहते हैं, लगभग 16 सेमी. लम्बा होता है। अन्त में, यह 3-4 सेमी. सीधी नली के रूप में गुदा नामक छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलता है। बड़ी आंत में जल का अवशोषण होता है तथा मल बनता है।
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इसमें निम्नलिखित अंग सम्मिलित किये जते हैं
Pachan Tantra |
3. पाचन ग्रन्थियाँ
आहार नाल से बाहर पाचन तन्त्र से सम्बन्धित यकृत तथा अग्न्याशय नामक दो ग्रन्थियाँ और होती हैं
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(i) यकृत—
यह गहरे भूरे रंग की डायफ्राम के नीचे दायीं ओर सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यकृत में पित्त रस का निर्माण होता है, जो एक गोल थैली जैसी रचना पित्ताशय में एकत्र होता रहता है। पित्तरस में पाचक एन्जाइम तो नहीं होते, परन्तु यह वसा को अवशोषण के योग्य बनाता है।
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(ii) अग्न्याशय-
यह पीले से रंग की दूसरी पाचन ग्रन्थि है, जो आमाशय तथा ग्रहणी के बीच स्थित होती है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। एक प्रकार की कोशिकाएँ पाचक रस अर्थात् अग्न्याशयिक रस का स्राव करती है, जिसमें स्टार्च, प्रोटीन तथा वसा के पाचक एन्जाइम बनते हैं और ग्रहणी या पक्वाशय में पहुँचते हैं। दूसरे प्रकार की कोशिकाएँ समूहों में अनियमित रूप से बिखरी रहती हैं। ये लैंगर हैन्स के द्वीप समूह कहलाती हैं। ये कोशिकाएँ इन्सुलिन नामक हॉर्मोन का स्रावण करती हैं।
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